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________________ ४१२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-दृष्टो मया भवत्पुत्रोऽन्नार्थी चक्रम्यमाण:, अपरश्च द्विजो ब्राह्मणार्थी, यदि स तेन दृष्टोऽभविष्यत् तर्हि अभोक्ष्यत, न तु स भुक्तवान्, अन्येन पथा स गतः । मैंने आपका अन्नार्थी पत्र घूमता हुआ देखा था और एक द्विज ब्राह्मणार्थी भी देखा था, यदि आपका पुत्र उसने देखा होता तो वह भोजन कर लेता, किन्तु उसने भोजन नहीं किया क्योंकि वह द्विज किसी अन्य मार्ग से चला गया। सिद्धि-(१) अभविष्यत् । यहां 'भू सत्तायाम् (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से भूतकाल अर्थ में लुङ्' प्रत्यय है। (२) अभोक्ष्यत । यहां 'भुज पालनाभ्यवहारयोः' (अदा०आ०) धातु से इस सूत्र से भूतकाल में तृङ्' प्रत्यय है। लुङ्प्रत्ययविकल्पाधिकारः (भूते) (२६) वोताप्योः ।१४१॥ प०वि०-वा अव्ययपदम्, आ अव्ययपदम्, उताप्यो: ७।२। स०-उतश्च अपिश्च तौ-उतापी, तयो:-उताप्योः (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-लिनिमित्ते, लुङ्, क्रियातिपत्तौ, भूते इति चानुवर्तते। अन्वय:-भूते आ उताप्योर्लिनिमित्ते क्रियातिपत्तौ वा लुङ् । अर्थ:-भूते काले 'उताप्यो: समर्थयोर्लिङ् (३।३।१५१) इति सूत्रपर्यन्तं लिनिमित्ते क्रियातिपत्तौ सत्यां विकल्पेन लुङ् प्रत्ययो भवतीत्यधिकारोऽयम् । वक्ष्यति 'विभाषा कथमि लिङ्च' (३।३।१४३) कथं नाम तत्र भवान् शूद्रं न याजयिष्यत् (लुङ) यथाप्राप्तं च न याजयेत् (लिङ्)। ___आर्यभाषा-अर्थ-(भूते) भूतकाल में (आ+उताप्यो:) उताप्योः समर्थयोर्लिङ् (३।३।१५१) इस सूत्र तक (लिङ्तिमित्ते) लिङ् का निमित्त होने पर तथा (क्रियातिपत्तौ) क्रिया की असिद्धि होने पर (वा) विकल्प से (लुङ्) लुङ् प्रत्यय होता है, यह अधिकार सूत्र है। जैसे कहेगा-विभाषा कथमि लिङ् च (३।३।१४३)। यहां लिङ् का निमित्त होने से क्रिया की असिद्धि में भूतकाल में लुङ् प्रत्यय भी होता है-कथं नाम तत्र भवान् शूद्र नायाजयिष्यत् । कैसे आपने शूद्र को यज्ञ नहीं कराया और यथाप्राप्त लिङ् भी होता है-न याजयेत् । यज्ञ नहीं कराया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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