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________________ तृतीयाध्यायस्य तृतीयः पादः ४११ आर्यभाषा - अर्थ - (भविष्यति ) भविष्यत्काल में (लिनिमित्ते) लिङ्लकार के निमित्त (क्रियातिपत्तौ) क्रिया की अतिपत्ति = असिद्धि होने पर (धातोः) धातु से परे (लृङ्) लृङ् प्रत्यय होता है। उदा० - भवान् दक्षिणेन चेदायास्यत न शकटं पर्याभविष्यत् । आप यदि दक्षिण मार्ग से आओगे तो आपकी गाड़ी नहीं टूटेगी। अभोक्ष्यत भवान् घृतेन यदि मत्समीपमागमिष्यत् । आप यदि मेरे पास आओगे तो घृत से भोजन करोगे। सिद्धि-(१) आयास्यत्। यहां 'आङ्' उपसर्गपूर्वक 'या प्रापणे' (अदा०प०) धातु से इस सूत्र से भविष्यत्काल लिनिमित्त हेतु और हेतुमान् अर्थ में तथा क्रिया की असिद्धि के कथन में 'लृङ्' प्रत्यय है। यहां दक्षिण मार्ग से आना हेतु और गाड़ी का न टूटना हेतुमान् है । क्रिया की अतिपत्ति इस अर्थापत्ति से प्रकट होती है कि यदि आप दक्षिण मार्ग से आओगे तो गाड़ी टूट जायेगी । से (२) पर्याभविष्यत् । यहां 'आङ्' उपसर्गपूर्वक 'गम्लृ गतौं' (भ्वा०प०) धातु इस सूत्र से 'लृङ्' प्रत्यय है। (३) अभोक्ष्यत । यहां 'भुज पालनाभ्यवहारयो:' (रुधा०आ०) धातु से 'लृङ्' प्रत्यय है। (४) आगमिष्यत् । यहां 'आङ्' उपसर्गपूर्वक 'गम्लृ गतौं (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से 'लृङ्' प्रत्यय है। लृङ् (भूते) (२८) भूते च । १४० । इस सूत्र प०वि० - भूते ७ ।१ च अव्ययपदम् । अनु० - लिनिमित्ते लृङ् क्रियातिपत्तौ इति चानुवर्तते । अन्वयः-भूते च लिङ्निमित्ते क्रियातिपत्तौ धातोलृङ् । अर्थ:- भूते कालेऽपि लिङ्निमित्ते क्रियातिपत्तौ च सत्यां धातोः परो लृङ् प्रत्ययो भवति। उदा०-दृष्टो मया भवत्पुत्रोऽन्नार्थी चङ्क्रम्यमाणः, अपरश्च द्विजो ब्राह्मणार्थी, यदि स तेन दृष्टोऽभविष्यत् तर्हि अभोक्ष्यत, न तु स भुक्तवान्, अन्येन पथा स गतः । Jain Education International आर्यभाषा - अर्थ - (भूते) भूतकाल में (च) भी (लिनिमित्ते ) लिङ्लकार के निमित्त में (क्रियातिपत्तौ ) क्रिया की असिद्धि होने पर (धातो: ) धातु से परे (लृङ् ) लृङ् प्रत्यय होता है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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