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________________ ४०६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अन्वय:-क्रियाप्रबन्धसामीप्ययोर्धातोरनद्यतनवत् प्रत्ययो न। अर्थ:-क्रियाप्रबन्धे सामीप्ये च गम्यमाने धातो: परोऽनद्यतनवत् प्रत्ययविधिर्न भवति। 'अनद्यतने लङ् (३।२।१११) 'अनद्यतने लुट्' (३।३ ।१५) इति भूतानद्यतने भविष्यदनद्यतने च लङ्लुटौ प्रत्ययौ विहितौ, तयोरयं प्रतिषेधः । क्रियाप्रबन्ध: क्रियाया: सातत्येनानुष्ठानम् । उदा०-(क्रियाप्रबन्ध:) देवदत्तो यावज्जीवं भृशमन्नमदात् (लुङ) भृशमन्नं दास्यति (लुट)। यज्ञदत्तो यावज्जीवं पुत्रमध्यापिपत् (लुङ) यावज्जीवं पुत्रमध्यापयिष्यति (लुट्) । (सामीप्यम्) येयं पौर्णमास्यतिक्रान्ता, एतस्यामुपाध्यायोऽग्नीनाधित, सोमेनाऽयष्ट, गामदित (लुङ्)। येयममावस्याऽऽगामिनी, एतस्यामुपाध्यायोऽग्नीनाधास्यते, सोमेन यक्ष्यते, गां दास्यते (लुट)। आर्यभाषा-अर्थ-(क्रियाप्रबन्धसामीप्ययो:) क्रिया की निरन्तरता और काल की समीपता की प्रतीति में (धातो:) धातु से परे (अनद्यतनवत्) अनद्यतन भूतकाल और अनद्यतन भविष्यत्काल में विहित लङ् और लुट् प्रत्यय (न) नहीं होते हैं। उदा०-(क्रियाप्रबन्ध) देवदत्तो यावज्जीवमन्नमदात् (लुङ्) । देवदत्त ने आजीवन बहुत अन्न का दान किया। (भूतकाल) भृशमन्नं दास्यति (लट्)। बहुत अन्न का दान करेगा (भविष्यत्काल)। (सामीप्य) येयं पौर्णमास्यतिक्रान्ता, एतस्यामुपाध्यायोऽग्नीनाधित, सोमेनायष्ट, गामदित (लुङ्)। जो यह पौर्णमासी गयी है इसमें उपाध्याय जी ने अनेक अग्नियों का आधान किया (अनेक यज्ञ किये), सोम से यज्ञ किया, गोदान किया (भूतकाल)। येयममावस्यागामिनी, एतस्यामुपाध्यायोऽग्नीनाधास्यते, सोमेन यक्ष्यते, गां दास्यते (लुट्)। जो यह आनेवाली अमावस्या है, इसमें उपाध्याय जी अनेक अग्नियों का आधान करेंगे, सोम से यज्ञ करेंगे, गोदान करेंगे (भविष्यत्काल)। सिद्धि-(१) अदात् । दा+लुङ्। अट्+दा+च्लि+लुङ्। अ+दा+सिच्+तिम् । अ+दा+त् । अदात्। यहां डुदाञ् दाने (जुउ०) धातु से 'लुङ्' (३।२।११०) से भूतकाल में 'लुङ्' प्रत्यय है। 'गातिस्थाघु०' (२।४/७०) से सिच्’ का लुक् होता है। (२) दास्यति। यहां पूर्वोक्त 'दा' धातु से लट् शेषे च' (३।३।१३) से भविष्यत्काल में लृट्' प्रत्यय है, 'स्यतासी लुलुटो:' (३।१।३३) से 'स्य' विकरण-प्रत्यय होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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