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तृतीयाध्यायस्य तृतीयः पादः
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यहां 'ईषत् ' तथा 'आढ्य' कर्ता उपपद होने पर 'भू सत्तायाम्' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र 'खल्' प्रत्यय है। 'खल्' प्रत्यय के 'खित्' होने से 'अरुर्द्विषदजन्तस्य मुम् (६ / ३ /६६ ) से 'आढ्य' शब्द को 'मुम्' आगम होता है।
(२) दुराढ्यम्भवम् । यहां 'दुस्' उपपद तथा 'आढ्य' कर्ता उपपद होने पर 'भू' धातु से पूर्ववत् 'खल्' प्रत्यय है।
(३) ईषदाढ्यङ्करः । 'ईषद्' उपपद तथा 'आढ्य' कर्म उपपद होने पर 'डुकृञ् करणें' (तना० उ० ) धातु से पूर्ववत् 'खल्' प्रत्यय है।
(४) स्वाढ्यङ्करः । 'सु' उपपद तथा 'आढ्य' कर्म उपपद होने पर 'कृ' धातु से 'खल्' प्रत्यय है।
विशेष- यहां च्वि-अर्थ = अभूततद्भाव अर्थ में 'खल्' प्रत्यय अभीष्ट है। युच् (भावे कर्मणि च ) -
(१६) आतो युक् । १२८ ।
प०वि०-आत: ५ ।१ युच् १ । १ । अनु०-ईषदुःसुषु कृच्छ्राकृच्छ्रार्थेषु इति चानुवर्तते । अन्वयः - कृच्छ्राकृच्छ्रार्थेषु ईषदुः सुषु आतो धातोर्युच् । अर्थ:-कृच्छ्राकृच्छ्रार्थेषु ईषद् - दु: - सुषु उपपदेषु आकारान्तेभ्यो धातुभ्यो युच् प्रत्ययो भवति ।
उदा०-(ईषत्) ईषत्पानः सोमो भवता । (दुस्) दुष्पानः सोमो भवता । (सुः) सुपानः सोमो भवता । ( ईषत् ) ईषद्दाना गौर्भवता । ( दुस्) दुर्दाना गौर्भवता । (सु) सुदाना गौर्भवता ।
आर्यभाषा-अर्थ- (कृच्छ्राकृच्छ्रार्थेषु) सुख और दुःख अर्थ में ( ईषदुः सुषु) ईषद्, दुस्, सु उपपद होने पर (आत:) आकारान्त धातुओं से परे (युच्) युच् प्रत्यय होता है। उदा०- - ( ईषत् ) ईषत्पान: सोमो भवता । आपके द्वारा सोम का पान करना सुगम है । (दुस्) दुष्पानः सोमो भवता । आपके द्वारा सोम का पान करना कठिन है। (सु) सुपान: सोमो भवता । आपके द्वारा सोम का पान करना सुगम है। ( ईषत् ) ईषद् दाना गौर्भवता। आपके द्वारा गौ का दान करना सुगम है । (दुस्) दुर्दाना गौर्भवता । आपके द्वारा गौ का दान करना कठिन है। (सु) सुदाना गौर्भवता । आपके द्वारा गौ का दान करना सुगम है ।
सिद्धि - (१) ईषत्पानः । ईषत्+पा+युच् । ईषत्+पा+अन । ईषत्पान+सु । ईषत्पानः । यहां 'ईषत्' उपपद 'पा पाने' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से युच्' प्रत्यय है। 'युवोरनाक' (७ 1१1१) से 'यु' के स्थान में 'अन' आदेश होता है।
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