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________________ तृतीयाध्यायस्य तृतीयः पादः ३६६ यहां 'ईषत् ' तथा 'आढ्य' कर्ता उपपद होने पर 'भू सत्तायाम्' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र 'खल्' प्रत्यय है। 'खल्' प्रत्यय के 'खित्' होने से 'अरुर्द्विषदजन्तस्य मुम् (६ / ३ /६६ ) से 'आढ्य' शब्द को 'मुम्' आगम होता है। (२) दुराढ्यम्भवम् । यहां 'दुस्' उपपद तथा 'आढ्य' कर्ता उपपद होने पर 'भू' धातु से पूर्ववत् 'खल्' प्रत्यय है। (३) ईषदाढ्यङ्करः । 'ईषद्' उपपद तथा 'आढ्य' कर्म उपपद होने पर 'डुकृञ् करणें' (तना० उ० ) धातु से पूर्ववत् 'खल्' प्रत्यय है। (४) स्वाढ्यङ्करः । 'सु' उपपद तथा 'आढ्य' कर्म उपपद होने पर 'कृ' धातु से 'खल्' प्रत्यय है। विशेष- यहां च्वि-अर्थ = अभूततद्भाव अर्थ में 'खल्' प्रत्यय अभीष्ट है। युच् (भावे कर्मणि च ) - (१६) आतो युक् । १२८ । प०वि०-आत: ५ ।१ युच् १ । १ । अनु०-ईषदुःसुषु कृच्छ्राकृच्छ्रार्थेषु इति चानुवर्तते । अन्वयः - कृच्छ्राकृच्छ्रार्थेषु ईषदुः सुषु आतो धातोर्युच् । अर्थ:-कृच्छ्राकृच्छ्रार्थेषु ईषद् - दु: - सुषु उपपदेषु आकारान्तेभ्यो धातुभ्यो युच् प्रत्ययो भवति । उदा०-(ईषत्) ईषत्पानः सोमो भवता । (दुस्) दुष्पानः सोमो भवता । (सुः) सुपानः सोमो भवता । ( ईषत् ) ईषद्दाना गौर्भवता । ( दुस्) दुर्दाना गौर्भवता । (सु) सुदाना गौर्भवता । आर्यभाषा-अर्थ- (कृच्छ्राकृच्छ्रार्थेषु) सुख और दुःख अर्थ में ( ईषदुः सुषु) ईषद्, दुस्, सु उपपद होने पर (आत:) आकारान्त धातुओं से परे (युच्) युच् प्रत्यय होता है। उदा०- - ( ईषत् ) ईषत्पान: सोमो भवता । आपके द्वारा सोम का पान करना सुगम है । (दुस्) दुष्पानः सोमो भवता । आपके द्वारा सोम का पान करना कठिन है। (सु) सुपान: सोमो भवता । आपके द्वारा सोम का पान करना सुगम है। ( ईषत् ) ईषद् दाना गौर्भवता। आपके द्वारा गौ का दान करना सुगम है । (दुस्) दुर्दाना गौर्भवता । आपके द्वारा गौ का दान करना कठिन है। (सु) सुदाना गौर्भवता । आपके द्वारा गौ का दान करना सुगम है । सिद्धि - (१) ईषत्पानः । ईषत्+पा+युच् । ईषत्+पा+अन । ईषत्पान+सु । ईषत्पानः । यहां 'ईषत्' उपपद 'पा पाने' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से युच्' प्रत्यय है। 'युवोरनाक' (७ 1१1१) से 'यु' के स्थान में 'अन' आदेश होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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