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________________ ३६७ तृतीयाध्यायस्य तृतीयः पादः उदा०-(घ) आखनन्ति येन स:-आखनः । (घ) आखान: । भूमि खोदने का साधन कुदाल आदि। सिद्धि-(१) आखनः । आङ्+खन्+घ । आ+खन्+अ। आखन+सु । आखनः । यहां 'आङ्' उपसर्गपूर्वक ‘खनु अवदारणे (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से करण कारक में 'घ' प्रत्यय है। (२) आखान: । पूर्वोक्त खन्' धातु से इस सूत्र से पूर्ववत् ‘घञ्' प्रत्यय है। अत उपधाया:' (७।२।११६) से 'खन्' धातु को उपधावृद्धि होती है। खल् (भावे कर्मणि च) (१४) ईषदुःसुषु कृच्छ्राकृच्छ्रार्थेषु खल्।१२६ । प०वि०-ईषत्-दु:-सुषु ७।३ कृच्छ्र-अकृच्छार्थेषु ७।३ खल् १।१ । स०-ईषच्च दुश्च सुश्च ते-ईषदुःसव:, तेषु ईषदु:सुषु (इतरेतरयोगद्वन्द्व:) । कृच्छ्रम्=दु:खम् । न कृच्छ्रमिति अकृच्छ्रम्=सुखम् । कृच्छ्रे च अकृच्छ्रे च ते-कृच्छ्राकृच्छ्रे । कृच्छ्राकृच्छ्रे अर्धा येषां तेकृच्छ्राकृच्छ्रार्थाः, तेषु-कृच्छ्राकृच्छ्रार्थेषु (इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भितबहुव्रीहि:)। अन्वय:-कृच्छ्राकृच्छ्रार्थेषु ईषदु:सुषु धातो: खल् । अर्थ:-कृच्छ्राकृच्छ्रार्थेषु ईषदु:सुषु उपपदेषु धातो: पर: खल् प्रत्ययो भवति । कृच्छ्रे दुसो विशेषणम् । अकृच्छं च ईषत्स्वोर्विशेषणम् अर्थसम्भवात् । उदा०-(ईषत्) ईषत्कर: कटो भवता। (दुस्) दुष्कर: कटो भवता। (सुः) सुकर: कटो भवता। ____ आर्यभाषा-अर्थ-(कृच्छ्राकृच्छ्रार्थेषु) दुःख और सुख अर्थ में (ईषदुःसुषु) ईषत्, दुस्, सु उपपद होने पर (धातो:) धातु से परे (खल्) खल् प्रत्यय होता है। कृच्छ्र दुस् का विशेषण है और अकृच्छ्र ईषत् और सु का विशेषण है, अर्थ की सम्भवता से। उदा०-(ईषत्) ईषत्कर: कटो भवता । आपके द्वारा चटाई बनाना सुगम है। (दुस्) दुष्कर: कटो भवता । आपके द्वारा चटाई बनाना कठिन है। (सु) सुकर: कटो भवता । आपके द्वारा चटाई बनाना सुगम है। सिद्धि-(१) ईषत्करः । ईषत्+कृ+खल्। ईषत्+कर+अ। ईषत्कर+सु । ईषत्करः । यहां अकृच्छ्र अर्थ में 'ईषत्' शब्द उपपद होने पर 'डुकृञ् करणे (तना०उ०) धातु से इस सूत्र से 'खल्' प्रत्यय है। 'सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७।३।८४) से कृ' धातु को गुण होता है। तयोरेव कृत्यक्तखला:' (३।४।७०) से खल्' प्रत्यय कर्मवाच्य अर्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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