________________
३८८
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् ल्युट् (भावे, नपुंसके)(४) कर्मणि च येन संस्पर्शात् कर्तुः शरीरसुखम् ।११६ |
प०वि०-कर्मणि ७१ च अव्ययपदम्, येन ३१ संस्पर्शात् ५।१ कर्तुः ६।१ शरीरसुखम् १।१।।
स०-शरीरस्य सुखमिति शरीरसुखम् (षष्ठीतत्पुरुष:)। अनु०-नपुंसके भावे इति चानुवर्तते ।
अन्वय:-येन कर्मणा संस्पर्शात् कर्तुः शरीरसुखं तस्मिन् कर्मणि च नपुंसके भावे धातोयुट्।
अर्थ:-येन कर्मणा संस्पृश्यमानस्य कर्तुः शरीरसुखमुत्पद्यते तस्मिन् कर्मण्युपपदेऽपि नपुंसकलिङ्गे भावे चार्थे वर्तमानाद् धातो: परो ल्युट् प्रत्ययो भवति। पूर्वेणैव ल्युट्-प्रत्यये सिद्धे नित्यसमासार्थमिदं वचनम्, उपपदसमासो हि नित्यसमासः ।
उदा०-पय:पानं सुखं देवदत्तस्य । ओदनभोजनं सुखं यज्ञदत्तस्य ।
आर्यभसाषा-अर्थ-(यन) जिस कर्म से (संस्पर्शात्) संस्पर्श करनेवाले (कर्तुः) कर्ता को (शरीरसुखम्) शारीरिक सुख होता है, उस (कमणि) कर्म के उपपद होने पर (च) भी (नपुंसके) नपुंसकलिङ्ग में और (भावे) भाव अर्थ में विद्यमान (धातो:) धातु से परे (ल्युट) ल्युट् प्रत्यय होता है। पूर्व सूत्र से भी ल्युट् प्रत्यय सिद्ध था यह नित्य समास के लिये कथन किया गया है क्योंकि उपपद समास नित्य समास है।
उदा०-पय:पानं सुखं देवदत्तस्य । दुग्ध का पान देवदत्त को सुखकारी है। ओदनभोजनं सुखं यज्ञदत्तस्य। चावल का भोजन यज्ञदत्त को सुखकारी है।
सिद्धि-(१) पयःपानम् । पा+ल्युट् । पा+अन। पान+सु। पानम्। पय:+पानम् = पयःपानम्।
यहां पयस् कर्म उपपद होने पर नपुंसकलिङ्ग में और भाव अर्थ में 'पा पाने (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से 'ल्युट्' प्रत्यय है। पयस् और पान पदों का उपपदमतिङ् (२।२।१९) से नित्यसमास होता है। पय: के सेवन से पा धातु के कर्ता देवदत्त आदि को शरीरसुख होता है।
(२) ओदनभोजनम् । यहां ओदन कर्म उपपद होने पर 'भुज पालनाभ्यवहारयोः' (रुधा०आ०) धातु से पूर्ववत् ल्युट्' प्रत्यय है। 'पुगन्तलघूपधस्य च' (७।३।८६) से 'भुज्' धातु को लघूपध गुण होता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org