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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
सिद्धि - (१) स्नानीयम् । स्ना+अनीयर् । स्ना+अनीय। स्नानीय+सु। स्नानीयम् । यहां 'ष्णा शौचें' (अदा०प०) धातु से इस सूत्र से करण कारक में 'तव्यत्तव्यानीयरः' (३।१।९६) से अनीयर् प्रत्यय है।
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(२) दानीयः । दा+अनीयर् । दा+अनीय। दानीय+सु । दानीयः ।
यहां डुदाञ् दाने (जु०उ० ) धातु से इस सूत्र से सम्प्रदान कारक में तव्यत्तव्यानीयरः ' (३ /१/९४) से अनीयर् प्रत्यय है ।
(३) अपसेचनम् । अप्+सिच्+ल्युट् । अप+सेच्+अन । अपसेचन+सु। अपसेचनम्। यहां 'अप' उपसर्गपूर्वक 'विच्तृ सेचने' (रुधा०प०) धातु से इस सूत्र से कर्म कारक में 'ल्युट्' प्रत्यय है । पुगन्तलघूपधस्य च' (७/३/८५) से 'सिच्' धातु को लघूपधगुण होता है।
(४) अवस्रावणम् । अव+सु+णिच् । अवस्रावि+ल्युट् । अवस्राव्+अन । अवस्रावण+सु । अवस्रावणम् ।
यहां 'अव' उपसर्गपूर्वक 'त्रु गतौं' (भ्वा०प०) इस णिजन्त धातु से इस सूत्र से कर्म कारक में 'ल्युट्' प्रत्यय है । 'जेरनिटिं' (६/४/५१) से 'णिच्' का लोप होता है। (५) राजभोजनाः । भुज् + ल्युट् । भोज्+अन । भोजन+जस् । भोजनाः ।
यहां 'भुज पालनाभ्यवहारयो:' (रुधा०आ०) धातु से इस धातु से कर्म कारक में 'ल्युट्' प्रत्यय है । 'युवोरनाकौँ (७ 1१1१ ) से यु' के स्थान में 'अन' आदेश होता है । तत्पश्चात् राजन् और भोजन पदों का षष्ठीसमास होता है।
(६) राजाच्छादनानि । यहां आङ्पूर्वक 'छद' (चु०3०) धातु से इस सूत्र से कर्म कारक में 'ल्युट्' प्रत्यय है । तत्पश्चात् राजन् और आच्छादन पदों का षष्ठीसमास होता है।
(७) प्रस्कन्दनम् । यहां 'प्र' उपसर्गपूर्वक 'स्कन्दिर् गतिशोषणयो:' (भ्वा०प०) से इस सूत्र अपादान कारक में 'ल्युट्' प्रत्यय है ।
धातु
(८) प्रपतनम् | यहां 'प्र' उपसर्गपूर्वक पत्लृ गतौं' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र अपादान कारक में 'ल्युट्' प्रत्यय है।
क्तः (भावे, नपुंसके ) -
प०वि० - नपुंसके ७ ।१ भावे ७ । १ क्तः १ । १ ।
अन्वयः
'
- नपुंसके भावे च धातोः क्तः ।
अर्थ:- नपुंसकलिङ्गे भावे चार्थे वर्तमानाद् धातोः परः क्तः प्रत्ययो
भवति ।
(२) नपुंसके भावे क्तः ।११४ |
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