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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
सुत्या=अभिषवदिवस: । वह दिन जिसमें सोम का सवन किया जाता है। (शीङ्) शय्यते यस्यां सा शय्या । जिस पर शयन किया जाता है वह खट्वा आदि । (भृञ्) भरणं भृत्या, जीविका । आजीविका (नौकरी आदि) । (इण्) ईयते = गम्यते यया सा इत्या= दीपिका । जिससे रात्रि में अयन=गमन किया जाता है, वह दीपिका (लालटेन आदि) ।
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सिद्धि - (१) समज्या । सम्+अज्+क्यप् । सम्+अज्+य। समज्य+टाप् । समज्य+आ । समज्या+सु | समज्या ।
यहां ‘सम्' उपसर्गपूर्वक ‘अज गतिक्षेपणयो:' (भ्वा०प०) धातु से भाव अर्थ में संज्ञा विषय में तथा स्त्रीलिङ्ग में इस सूत्र से 'क्यप्' प्रत्यय है। संज्ञा की प्रतीति न होने से 'अजेर्व्यघञपो:' ( २/४/५६ ) से 'अज' धातु के स्थान में 'वी' आदेश नहीं होता है। 'अजाद्यतष्टाप्' (४ 1१1४ ) से स्त्रीलिङ्ग में 'टाप्' प्रत्यय होता है।
(२) निषद्या । नि' उपसर्गपूर्वक षट्ट विशरणगत्यवसादनेषु' (भ्वा०प०) धातु इस सूत्र से पूर्ववत् क्यप्' प्रत्यय है।
(३) निपत्या | 'नि' उपसर्गपूर्वक पत्लृ गतौं' ( वा०प०) ।
(४) मन्या | 'मन ज्ञाने' (दि०आ० ) ।
(५) सुत्या । षुञ् अभिषवे' (स्वा० उ० ) से 'क्यप्' प्रत्यय परे होने पर 'हस्वस्य पिति कृति तुक्' (६।१।७१) से 'सु' धातु को 'तुक्' आगम होता है।
(६) शय्या | शीङ् +क्यप् । श् अयङ्+य। श् अय्+य। शय्य+टाप् । शय्य+आ । शय्या+सु । शय्या |
यहां 'शीङ् स्वप्ने' (अदा०आ०) धातु से 'क्यप्' प्रत्यय करने पर 'अयङ् यि क्ङिति (७/४/२२ ) से 'शी' धातु को 'अयङ्' आदेश होता है।
(७) भृत्या | 'डुभृञ् धारणपोषणयो:' (जु०3०) धातु से 'क्यप्' प्रत्यय करने पर 'भृ' धातु को 'ह्रस्वस्य पिति कृति तुक्' (६ । १ । ६९ ) से 'तुक्' आगम होता है। (८) इत्या | 'इण् गतौं' (अदा०प०) धातु से 'क्यप्' प्रत्यय करने पर पूर्ववत् तुक्' आगम होता है ।
शः+क्यप्
(७) कृञः श च । १०० ।
प०वि०-कृञः ५ ।१ श १ । १ ( लुप्तप्रथमानिर्देशः ) च अव्ययपदम्। अनु०-स्त्रियां, क्यप्, उदात्त इति चानुवर्तते ।
अन्वयः - अकर्तरि कारके भावे च कृञो धातोः स्त्रियां शः क्यप् च
उदात्तः ।
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