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________________ ३७१ तृतीयाध्यायस्य तृतीयः पादः यहां यज देवपूजासंगतिकरणदानेषु' (भ्वा०3०) धातु से भाव अर्थ में इस सूत्र से क्यप्' प्रत्यय करने पर यज्' धातु को वचिस्वपियजादीनां किति' (६।१।१५) से सम्प्रसारण होता है। 'सम्प्रसारणाच्च' (६।१।४४) से 'अ' को पूर्वरूप एकादेश होता है, पूर्ववत् टाप् प्रत्यय है। क्यप् (भावे)(६) संज्ञायां समजनिषदनिपतमनविदषुञ्शीभृञिणः ।६६ । प०वि०-संज्ञायाम् ७।१ समज-निषद-निपत-मन-विद-घुञ्शीङ्-भृञ्-इण: ५।१। स०-समजश्च निषदश्च निपतश्च मनश्च विदश्च षुञ् च शीङ् च भृञ् च इण् एतेषां समाहार:-समज०इण, तस्मात्-समज०इण: (समाहारद्वन्द्वः)। अनु०-स्त्रियाम्, उदात्त:, भावे, क्यप् इति चानुवर्तते। अन्वय:-भावे समज०इणो धातो: स्त्रियां क्यप् उदात्त: संज्ञायाम्। अर्थ:-भावेऽर्थे वर्तमानेभा: समजादिभ्यो धातुभ्य: पर: स्त्रियां क्यप् प्रत्ययो भवति, स चोदात्तो भवति, संज्ञायां गम्यमानायाम् । उदा०- (समज) समज्या। (निषद) निषद्या। (निपत) निपत्या। (मन) मन्या। (विद) विद्या । (षुञ्) सुत्या। (शीङ्) शय्या। (भृञ्) भृत्या। (इण्) इत्या। आर्यभाषा-अर्थ-(भावे) भाव अर्थ में विद्यमान (समजाइण:) समज, निषद, निपत, मन, विद, पुञ्, शीङ्, भृञ्, इण् (धातो:) धातुओं से परे (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग में (क्यप्) क्यप् प्रत्यय होता है और वह (उदात्त:) उदात्त होता है, यदि वहां (संज्ञायाम्) संज्ञा अर्थ प्रकट हो। ___ उदा०-(समज) समजन्ति संगच्छन्ते यस्यां सा समज्या सभा। जिसमें लोग कार्य के लिए संगत होते हैं। (निषद्) निषीदन्ति यस्यां सा निषद्या-आपण: । दुकान। जिसमें लोग व्यवहार के लिये बैठते हैं। (निपत) निपतन्ति यस्यां सा निपत्या=पिच्छिला भूमिः । चिकणी जमीन जिस पर लोग फिसलन से गिरते हैं। (मन) मन्यन्ते यया सा मन्या गलपार्श्वशिरा, तया हि क्रुद्धो ज्ञायते । गल के पार्श्व की एक नाड़ी जिससे क्रुद्ध व्यक्ति जाना जाता है। (विद) विद्यते गृह्यते ययाऽर्थः सा विद्या। जिससे यथार्थ में पदार्थ ग्रहण किया जाता है। (षुञ्) सूयते अभिषूयते सोमो यस्यां सा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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