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________________ यक् (स्वार्थे) तृतीयाध्यायस्य प्रथमः पादः (२३) कण्ड्वादिभ्यो यक् ॥ २७ ॥ प०वि० - कण्डू - आदिभ्यः ५ । ३ यक् १ । १ । स०-कण्डू आदिर्येषां ते कण्ड्वादय:, तेभ्य:- कण्ड्वादिभ्यः (बहुव्रीहि: ) अनु०-धातोरित्यनुवर्तते । अन्वयः - कण्ड्वादिभ्यो धातुभ्यो यक् । अर्थ:- कण्ड्वादिभ्यो धातुभ्यः स्वार्थे यक् प्रत्ययो भवति । कण्ड्वादयः शब्दा, धातवः प्रातिपदिकानि च सन्ति । तेभ्यो धातुविवक्षायामेव यक् प्रत्ययो विधीयते, न प्रातिपदिकविवक्षायाम्। उदा०-कण्डूञ्-गात्रविघर्षणे । कण्डूयति, कण्डूयते वा । मन्तु अपराधे - मन्तूयति, इत्यादिकम् । आर्यभाषा - अर्थ - (कण्ड्वादिभ्यः) कण्डू आदि (धातो: ) धातुओं से स्वार्थ में (यक्) यक् प्रत्यय होता है। कण्ड्वादि विभाषित धातु हैं अर्थात् वे धातु और प्रातिपदिक दोनों हैं। यहां धातु का अधिकार होने से उनसे धातु - विवक्षा में ही 'यक्' प्रत्यय होता है; प्रातिपदिक विवक्षा में नहीं । २५ उदा० - कण्डूञ् गात्रविघर्षणे (खाज करना) । कण्डूयति, कण्डूयते वा । खाज करता है | मन्तु अपराधे ( अपराध करना) । मन्तूयति । अपराध करता है। सिद्धि - (१) कण्डूयति । कण्डूञ् +यक् । कण्डू+य । कण्डूय । कण्डूय+लट् । कण्डूय+शप् + तिप् । कण्डूय+अ+ति । कण्डूयति । यहां 'कण्डूञ गात्रविघर्षणें (क०3०) धातु से इस सूत्र से स्वार्थ में यक्' प्रत्यय है। 'यक्' प्रत्यय के कित् होने से 'सार्वधातुकार्धधातुकयोः' (७।३।८४) से प्राप्त गुण का 'क्ङिति च' (१1814 ) से निषेध हो जाता है। Jain Education International 'यक्' प्रत्यय के कित् होने से प्रतीत होता है कि कण्डूञ आदि शब्द धातु हैं। कण्डूञ् में दीर्घ ऊकार पढ़ा है। 'अकृत्सार्वधातुकयोर्दीर्घः' (७।४।२५) से दीर्घ हो ही जाता, इससे विदित होता है कि 'कण्डूञ्' आदि शब्द प्रातिपदिक भी हैं। धातुप्रकरणाद् धातुः कस्य चासञ्जनादपि । आह चेमं दीर्घं मन्ये धातुर्विभाषितः । । (२) कण्डूयते । कण्डूञ् के ञित् होने से 'स्वरितञितः कर्त्रभिप्राये क्रियाफले' (१।३।७१) से आत्मनेपद भी होता है। (३) कण्डूञ् आदि शब्द पाणिनीय धातुपाठ के कण्ड्वादिगण में देख लेवें । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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