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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् से कहना वा करना अर्थ में णिच् प्रत्यय है। वा०-अर्थवेदसत्यानामापुगवक्तव्य: (३।१।२५) से आपुक् आगम होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही विपाशयति' आदि पद सिद्ध करें।
(२) चुरादिगण की धातु पाणिनीय धातुपाठ में देख लेवें। णिच् (प्रयोजकव्यापारे)
(२२) हेतुमति च।२६ । ___ प०वि०-हेतुमति ७१ च अव्ययपदम्। अत्र पारिभाषिकस्य हेतुशब्दस्य ग्रहणं कर्त्तव्यम्, तत्प्रयोजको हेतुश्च (१।४।५५) इति। क्रियायाः स्वतन्त्रस्य कर्तुर्यः प्रयोजक:-प्रेरक: स हेतुरित्युच्यते । हेतुर्यस्यास्तीति हेतुमान्। नित्ययोगे मतुप् प्रत्ययः । हेतोर्य: प्रेषणादि व्यापार:=क्रियाविशेष: स हेतुमान्, तस्मिन्-हेतुमति (तद्धितवृत्तिः)।
अनु०-धातोरित्यनुवर्तते। अन्वय:-हेतुमति च धातोर्णिच्। अर्थ:-हेतुमति प्रयोजकव्यापारे वाच्येऽपि धातोणिच् प्रत्ययो भवति। उदा०-कटं कारयति देवदत्त: । ओदनं पाचयति यज्ञदत्तः ।
आर्यभाषा-अर्थ-(हतुमति) हेतुमान् अर्थ में (च) भी (धातो:) धातु से (णिच्) णिच् प्रत्यय होता है। यहां पारिभाषिक हेतु शब्द का ग्रहण है, लौकिक हेतु शब्द का नहीं। क्रिया के स्वतन्त्र कर्ता के प्रयोजक-प्रेरक की हेतु संज्ञा है। उस देवदत्त आदि प्रयोजक का जो प्रेषण आदि व्यापार=क्रियाविशेष है, उसे हेतुमान् कहते हैं।
उदा०-कटं कारयति देवदत्तः । देवदत्त चटाई बनवाता है। ओदनं पाचयति यज्ञदत्तः । यज्ञदत्त भात पकवाता है।
सिद्धि-(१) कारयति । कृ+णिच् । कार+इ। कारि। कारि+लट् । कारि+शप्+तिम् । कारे+अ+ति। कारयति।
यहां डुकृञ् करणे' (तनाउ०) धातु से इस सूत्र से हेतुमान् प्रेषण (आज्ञा देना) अर्थ में णिच् प्रत्यय है। 'अचो मिति' (७।२।१२५) से कृ को वृद्धि (कार्) होती है। णिजन्त कारि' धातु से वर्तमानकाल में लट् प्रत्यय है।
. (२) पाचयति। डुपचष् पाके' (भ्वा०प०) 'अत उपधाया:' (७।२।१२६) से उपधावृद्धि होती है।
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