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________________ ३६३ तृतीयाध्यायस्य तृतीयः पादः अर्थ:-अकर्तरि कारके भावे चार्थे वर्तमानेभ्यो यजादिभ्यो धातुभ्य: परो नङ् प्रत्ययो भवति। उदा०-(यज:) यज्ञ: । (याच:) याच्ना। (यत:) यत्नः । (विच्छ:) विश्न: । (प्रच्छ:) प्रश्न: । (रक्ष्) रक्ष्णः । आर्यभाषा-अर्थ- (अकीर) कर्ता से भिन्न (कारके) कारक में (च) और (भावे) भाव अर्थ में विद्यमान (यज०रक्ष:) यज, याच, यत, विच्छ, प्रच्छ, रक्ष् (धातो:) धातुओं से परे (नङ्) नङ् प्रत्यय होता है। उदा०-(यज) यज्ञः । देवपूजा, संगतिकरण और दान करना। (याच) यात्रा। मांगना। (यत) यत्नः । प्रयत्न करना। (विच्छ) विश्नः । गति करना। (प्रच्छ) प्रश्नः । पूछना। (रक्ष्) रक्ष्णः । रक्षा करना। रखना। सिद्धि-(१) यज्ञः । यज्+नङ् । यज्+न। यज्+ज । यज्ञ+सु । यज्ञः । यहां यज देवपूजासंगतिकरणदानेषु' (भ्वा०उ०) धातु से भाव में इस सूत्र से नड्' प्रत्यय है। स्तो: श्चुना श्चुः' (८।४।३९) से नड्' प्रत्यय के न्' को '' आदेश होता है। (२) यात्रा। याच्+न । याच+न। याच्+ज। याच्च+टाप् । याच्या+सु । यात्रा। यहां टुयाचू याञायाम्' (भ्वा०उ०) धातु से भाव में इस सूत्र से नङ्' प्रत्यय है। पूर्ववत् नङ्' प्रत्यय के न्' को 'ञ्’ आदेश होता है। यात्र+टाप्। 'अजाद्यतष्टा (४।१।४) से स्त्रीलिङ्ग में 'टाप्' प्रत्यय होता है। याच्या शब्द याच्या स्त्रियाम् (लिङ्गानुशासन २।६।) से स्त्रीलिङ्ग में होता है, शेष नङ्' प्रत्ययान्त शब्द “नडन्तः' (लि० २।५) से पुंलिङ्ग होते हैं। (३) यत्नः। यती प्रयत्ने' (भ्वा०आ०)। (४) विश्नः । विच्छ्+नङ् । विश्+न। विश्न+सु। विश्नः । यहां 'विच्छ गतौ (तु०प०)। 'छ्वोः शूडनुनासिके च' (६।४।१९) से 'छ्' के स्थान में 'श्' आदेश होता है। प्राप्त लघूपध गुण का क्डिति च (१।१५) से प्रतिषेध होता है। (५) प्रश्न: । प्रच्छ जीप्सायाम्' (तु०प०)। पूर्ववत् 'छ्' के स्थान में 'श्' आदेश होता है। प्रश्ने चासन्नकाले' (३।२।११७) ज्ञापक से 'अहिज्यावयि०' (६।१।१६) से प्राप्त सम्प्रसारण नहीं होता है। (६) रक्ष्णः । रक्ष+नङ् । रक्ष्+न। रक्ष्+ण। रक्ष्ण+सु। रक्ष्णः । यहां रक्ष रक्षणे (भ्वा०प०) 'रषाभ्यां नो ण: समानपदें (८।४।१) से णत्व होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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