SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४७ तृतीयाध्यायस्य तृतीयः पादः सिद्धि-(१) विद्यामदः । मद्+अप्। मद्+अ। मद+सु। मदः । विद्या+मदः= विद्यामदः। यहां उपसर्ग रहित 'मदी हर्षग्लेपनयोः' (भ्वा०प०) धातु से भाव में इस सूत्र से 'अप' प्रत्यय है। विद्यया मद इति विद्यामदः । कर्तकरणे कृता बहुलम्' (२।१।३१) से तृतीया तत्पुरुष समास होता है। ऐसे ही-कुलमदः । धनमदः । अप् (निपातनम्) (५०) प्रमदसम्मदौ हर्षे ।७१। प०वि०-प्रमद-सम्मदौ १।२ हर्षे ७।१। स०-प्रमदश्च सम्मदश्च तौ प्रमदसम्मदौ (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अनु०-अप् इत्यनुवर्तते। अन्वय:-अकर्तरि कारके भावे च प्रमदसम्मदावप् हर्षे । अर्थ:-अकर्तरि कारके भवे चार्थे हर्षेऽभिधेये प्रमदसम्मदौ शब्दौ अप्-प्रत्ययान्तौ निपात्येते। उदा०-कन्यानां प्रमदः । कोकिलानां सम्मदः । आर्यभाषा-अर्थ-(अकरि) कर्ता से भिन्न (कारके) कारक में (च) और (भावे) भाव अर्थ में विद्यमान और (हर्षे) हर्ष वाच्य होने पर (प्रमद-सम्मदौ) प्रमद और सम्मद शब्द (अप) अप् प्रत्ययान्त निपातित हैं। उदा०-कन्यानां प्रमदः । कन्याओं की खुशी। कोकिलानां सम्मदः । कोयलों की खुशी। प्रमद शब्द कन्याओं के हर्ष में और सम्मद शब्द कोयलों के हर्ष अर्थ में रूढ़ हैं। __सिद्धि-(१) प्रमदः । यहां प्र' उपसर्गपूर्वक 'मदी हर्षलेपनयोः' (भ्वा०प०) धातु से हर्षविशेष अर्थ में इस सूत्र से अप् प्रत्यय निपातित है। 'मदोऽनुपसर्गे (३।३।६७) से उपसर्गरहित मद्' धातु से 'अप्' प्रत्यय प्राप्त था, किन्तु यहां हर्ष अर्थ में सोपसर्ग मद्' धातु से 'अप्' प्रत्यय का निपातन किया गया है। ऐसे ही-सम्मदः । अप् (५१) समुदोरजः पशुषु।६६। प०वि०-सम्-उदो: ७ ।२ अज: ५।१ पशुषु ७।३ । स०-सम् च उच्च तौ-समुदौ, तयोः-समुदो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अनु०-अप् इत्यनुवर्तते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy