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________________ ३४६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अर्थ:-अकर्तरि कारके भावे चार्षे वर्तमानात् पण्-धातोः परो नित्यम् अप् प्रत्ययो भवति, परिमाणे गम्यमाने। नित्यग्रहणं विकल्पनिवृत्त्यर्थम्। उदा०-मूलकपण: । शाकपण: । संव्यवहाराय मूलकादीनां य: परिमितो मुष्टिर्बध्यते तस्येदमभिधानम्। . आर्यभाषा-अर्थ-(अकीरे) कर्ता से भिन्न (कारके) कारक में (च) और (भावे) भाव अर्थ में विद्यमान (पण:) पण् (धातो:) धातु से परे (नित्यम्) सदा (अप्) अप् प्रत्यय होता है, (परिमाणे) यदि वहां परिमाण अर्थ प्रकट हो। _उदा०-मलकपण: । बेचने के लिये बांधकर रखा गया मूलियों का गट्ठा। शाकपणः । बेचने के लिये बांधकर रखा गया पालक आदि शाक की मुष्टि (जुट्टी)। सिद्धि-मूलकपणः । पण्+अप्। पण्+अ। पण+सु। पणः । मूलक+पण:=मूलकपणः । यहां मूलक उपपद पण व्यवहारे स्तुतौ च' (भ्वा०आ०) धातु से इस सूत्र से 'अप्' प्रत्यय है। ऐसे ही-शाकपणः । अप् (४६) मदोऽनुपसर्गे।६७। प०वि०-मद: ५।१ अनुपसर्गे ७।१। स०-न विद्यते उपसर्गो यस्य स:-अनुपसर्गः, तस्मिन्-अनुपसर्गे (बहुव्रीहि:)। अनु०-अप् इत्यनुवर्तते। अन्वय:-अकर्तरि कारके भावे च अनुपसर्गे मदो धातोरप्। अर्थ:-अकर्तरि कारके भावे चार्थे वर्तमानाद् अनुपसर्गाद् मद्-धातो: परोऽप् प्रत्ययो भवति। उदा०-विद्यामद: । कुलमद: । धनमदः । आर्यभाषा-अर्थ-(अकीरे) कर्ता से भिन्न (कारके) कारक में (च) और (भावे) भाव अर्थ में विद्यमान (अनुपसर्गे) उपसर्ग से रहित (मद:) मद् (धातो:) धातु से परे (अप) अप् प्रत्यय होता है। उदा०-विद्यामदः । विद्या के कारण अभिमान। कुलमदः । उच्च कुल के कारण अभिमान। धनमदः । धन के कारण अभिमान। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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