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________________ तृतीयाध्यायस्य तृतीयः पादः ३३६ जाती है वह शर (बाण) । (उ) यव: । मिश्रण वा अमिश्रण करना। जिससे टूटा हुआ अंग जोड़ा जाता है वह-यव (जौ) । स्तवः । स्तुति करना । लव: । काटना । पवः । पवित्र करना । सिद्धि - (१) करः । कृ+अप् । कर्+अ । कर+सु । करः । यहां ऋकारान्त डुकृञ् करणे' (तना० उ० ) धातु से जाने में तथा करण कारक में इस सूत्र से 'घञ्' प्रत्यय है। सार्वधातुकार्धधातुकयोः' (७/३/८४) से 'कृ' धातु को गुण होता है। अप् (२) गरः । 'गृ निगरणे' (तु०प०) । (३) शर: । शृ हिंसायाम्' (क्रया०प० ) । (४) यव: । यु मिश्रणे मिश्रणे च' ( अदा०प० ) । (५) स्तव: । 'ष्टुञ् स्तुतौं' (अदा० उ० ) । (६) लव: । 'लूञ् छेदनें' (स्वा० उ० ) । (७) पव: । पूङ् पवने' (भ्वा०आ०) पूञ पवने (क्रया० उ० ) । 1 (४०) ग्रहवृदृनिश्चिगमश्च । ५८ | प०वि०-ग्रह-वृ-दृ- निश्चि गमः ५ ।१ च अव्ययपदम् । स०-ग्रहश्च वृश्च दृश्च निश्चिश्च गम् च एतेषां समाहारः -ग्रह०गम्, तस्मात्-ग्रह०गम: (समाहारद्वन्द्वः) । अन्वयः-अकर्तरि कारके भावे च ग्रहवृदृनिश्चिगमश्च धातोरप् । अर्थ:- अकर्तीर कारके भावे चार्थे वर्तमानेभ्यो ग्रहादिभ्यो धातुभ्यश्च परोऽप् प्रत्ययो भवति । उदा० - ( ग्रह ) ग्रहः । ( वृः ) वर: । (दुः ) दर: । (निश्चि: ) निश्चय: 1 ( गम् ) रामः । आर्यभाषा-अर्थ-(अकर्तीर) कर्ता से भिन्न (कारके) कारक में (च) और (भावे) भाव अर्थ में विद्यमान (ग्रह०गम: ) ग्रह, वृ, दृ, निश्चि, गम् (धातोः ) धातुओं से परे (च) भी (अप्) अप् प्रत्यय होता है। उदा०-(ग्रह) ग्रहः। ग्रहण करना । (वृ) वर: । वरण करना/जो वरण किया जाता है वह वर (श्रेष्ठ) । (दृ) दरः । विदारण करना/जो विदीर्ण किया जाता है वह दर ( गड्ढा ) | ( निश्चि) निश्चयः । निश्चय करना । ( गम्) गमः । गति करना / जिस पर चलते हैं वह - गम (मार्ग) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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