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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् 'पच्’ को उपधावृद्धि होती है। इस सूत्र से भाववचन घञ् प्रत्यय भविष्यत्काल में विधान किया गया है।
(२) भूति: । भू+क्तिन् । भू+ति। भूति+सु । भूतिः ।
'भू सत्तायाम् (भ्वा०प०)। स्त्रियां क्तिन् (३।३।९४) से भाव अर्थ में क्तिन्' प्रत्यय है।
(३) पुष्टि: । पुष्+क्तिन् । पुष्+टि। पुष्टि+सु। पुष्टिः ।
पुष पुष्टौं (क्रया०प०) धातु से पूर्ववत् क्तिन् प्रत्यय है। 'टुना ष्टुः' (८।४।४२) से ष्टुत्व होता है। अण्
(१०) अण् कर्मणि च।१२। प०वि०-अण् ११ कर्मणि ७१ च अव्ययपदम् । अनु०-भविष्यति, क्रियायां क्रियार्थायामिति चानुवर्तते। अन्वय:-क्रियार्थायां क्रियायां कर्मणि च धातोर्भविष्यति अण् ।
अर्थ:-क्रियार्थायां क्रियायां कर्मणि चोपपदे धातो: परो भविष्यति कालेऽण् प्रत्ययो भवति।
उदा०-काण्डलावो व्रजति । गोदायो व्रजति। अश्वदायो व्रजति। कम्बलदायो व्रजति।
आर्यभाषा-अर्थ-(क्रियार्थायाम्) किसी क्रिया के लिये (क्रियायाम्) कोई क्रिया (च) और (कर्मणि) कर्म उपपद होने पर (धातो:) धातु से परे (भविष्यति) भविष्यत्काल में (अण्) अण् प्रत्यय होता है।
उदा०-काण्डलावो व्रजति। काण्ड (पड़) को काटनेवाला जाता है। गोदायो व्रजति । गौ देनेवाला जाता है। अश्वदायो व्रजति । घोड़ा देनेवाला जाता है। कम्बलदायो व्रजति । कम्बल देनेवाला जाता है।
सिद्धि-(१) काण्डलाव: । यहां लवि' क्रिया के लिये व्रजि' क्रिया उपपद होने पर काण्ड कर्म उपपदवाले लून छेदने' (क्रयाउ०) धातु से इस सूत्र से 'अण्' प्रत्यय है। 'अचोऽञ्णिति' (७।२।११५) से लू' धातु को वृद्धि होती है।
(२) गोदायः। यहां ददाति क्रिया के लिये व्रजि क्रिया उपपद होने पर 'गौ' कर्म उपपदवाले डुदाञ् दाने (जु०उ०) धातु से इस सूत्र से 'अण्' प्रत्यय है। 'आतो युक् चिण्कृतो:' (७।३।३३) से दा धातु को 'युक्’ आगम होता है। ऐसे ही- 'अश्वदाय:'।
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