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________________ ३०२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (भविष्यति) भविष्यत्काल में (धातो:) धातु से परे (विभाषा) विकल्प से (लिङ्) लिङ् (च) और (लट्) लट् प्रत्यय होता है, विकल्प पक्ष में लुट् और लुट् प्रत्यय होते हैं। उदा०-ऊर्ध्वं मुहूर्ताद् उपाध्यायश्चेद् आगच्छेत् (लिङ्) आगच्छति (लट्) आगमिष्यति (लुट्) आगन्ता (लुट्)-अथ त्वं व्याकरणमधीष्व । एक मुहूर्त के पश्चात् यदि उपाध्याय जी आ जायें तो तू उनसे व्याकरणशास्त्र का अध्ययन करना। सिद्धि-(१) आगच्छेत् । यहां आङ् उपसर्गपूर्वक 'गम्लु गतौ' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से भविष्यत्काल में लिङ्' प्रत्यय है। (२) आगच्छति । पूर्वोक्त धातु से 'लट्' प्रत्यय है। (३) आगमिष्यति । पूर्वोक्त धातु से लृट्' प्रत्यय है। (४) आगन्ता । पूर्वोक्त धातु से 'लुट्' प्रत्यय है। विशेष-मुहूर्त काल का एक परिमाण है जो कि ४८ मिनट का होता है। यह दिन-रात का ३० तीसवां भाग होता है। तुमुन्+ण्वुल् (८) तुमुन्ण्वुलौ क्रियायां क्रियार्थायाम्।१०। प०वि०-तुमुन्-ण्वुलौ १।२ क्रियायाम् ७१ क्रियार्थायाम् ७।१। स०-तुमुन् च ण्वुल् च तौ तुमुन्ण्वुलौ (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । क्रियायै इयमिति क्रियार्था, तस्याम्-क्रियार्थायाम् (चतुर्थीतत्पुरुषः)। अनु०-भविष्यति इत्यनुवर्तते। अन्वय:-क्रियार्थायां क्रियायां धातोर्भवति तुमुन्ण्वुलौ। अर्थ:-क्रियार्थायां क्रियायामुपपदे धातो: परो भविष्यति काले तुमुन्-ण्वुलौ प्रत्ययौ भवत:। उदा०-(तुमुन्) भोक्तुं व्रजति देवदत्त: । (ण्वुल्) भोजको व्रजति यज्ञदत्तः। आर्यभाषा-अर्थ-(क्रियार्थायाम्) किसी क्रिया के लिये (क्रियायाम्) कोई क्रिया उपपद होने पर (धातो:) धातु से परे (भविष्यति) भविष्यत्काल में (तुमुन्-ण्वुलौ) तुमुन् और ण्वुल् प्रत्यय होते हैं। उदा०-(तुमुन्) भोक्तुं व्रजति देवदत्तः। देवदत्त भोजन के लिये जाता है। (ण्वुल्) भोजको व्रजति यज्ञदत्तः । यज्ञदत्त भोजन के लिये जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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