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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा-अर्थ-(लिप्स्यमानसिद्धौ) अभीष्ट भक्त (भात) आदि पदार्थ की प्राप्ति से स्वर्ग आदि सिद्धि अर्थ प्रकट करने पर (धातो:) धातु से परे (भविष्यति) भविष्यत्काल. में (विभाषा) विकल्प से (लट्) लट् प्रत्यय होता है, विकल्प पक्ष में लृट् और लुट् प्रत्यय होते हैं।
उदा०-(लट्) यो भक्तं ददाति स स्वर्गं गच्छति। (लुट्) यो भक्तं दास्यति स स्वर्गं गमिष्यति । (लुट्) यो भक्तं दाता स स्वर्ग गन्ता । जो भक्त-भात (चावल) देगा वह स्वर्ग में जायेगा। यहां याचक अपने लिप्स्यमान भात से स्वर्ग-सिद्धि का कथन करता हुआ है दाता जन को प्रोत्साहित करता है।
सिद्धि-(१) ददाति/गच्छति । यहां डुदाञ् दाने' (जुउ०) तथा 'गम्लु गतौ' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से भविष्यत्काल में लट्' प्रत्यय है।
(२) दास्यति/गमिष्यति । यहां पूर्वोक्त धातुओं से लृट् शेषे च' (३।३।१३) से विकल्प पक्ष में लट्' प्रत्यय है।
(३) दाता/गन्ता । यहां पूर्वोक्त धातुओं से 'अनद्यतने लुट्' (३।३।१५) से विकलप पक्ष में 'लुट' प्रत्यय है। लट्,लृट्+लुट्
(६) लोडर्थलक्षणे च।८। प०वि०-लोट-अर्थलक्षणे ७।१ च अव्ययपदम् ।
स०-लोटोऽर्थ इति लोडर्थ: । लोडर्थस्य लक्षणमिति लोडर्थलक्षणम्, तस्मिन्-लोडर्थलक्षणे (षष्ठीतत्पुरुषः)।
अनु०-भविष्यति, लट्, विभाषा इति चानुवर्तते। अन्वय:-लोडर्थलक्षणे च धातोर्भविष्यति विभाषा लट् ।
अर्थ:-लोडर्थस्य प्रैषादिकस्य लक्षणेऽर्थेऽपि धातो: परो भविष्यति काले विकल्पेन लट् प्रत्ययो भवति, पक्षे-लुट्लुटौ प्रत्ययौ भवतः।
उदा०-(लट) उपाध्यायश्चेदागच्छति-अथ त्वं व्याकरणमधीष्व । (लुट) उपाध्यायश्चेदागमिष्यति-अथ त्वं व्याकरणमधीष्व। (लुट्) उपाध्यायश्चेदागन्ता-अथ त्वं व्याकरणमधीष्व ।
आर्यभाषा-अर्थ-(लोडर्थलक्षणे) लोट् लकार के प्रैष आज्ञा आदि अर्थ को लक्षित करने अर्थ में (च) भी (धातो:) धातु से परे (भविष्यति) भविष्यत्काल में (विभाषा)
विकल्प से (लट्) लट् प्रत्यय होता है, विकल्प पक्ष में लृट् और लुट् प्रत्यय होते हैं। Jain Education International
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