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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (८।२।३०) से 'भुज्' धातु को कुत्व 'ग्' और खरि च' (८।४।५४) से ग्' को 'क्' होता है। आदेशप्रत्यययो:' (८।३।५९) से षत्व होता है।
(३) भोक्ता। भुज+लुट् । भुज+तास्+त। भुज्+तास्+डा। भु+त्+आ। भोज+त्+आ। भोग्+त्+आ। भोक्+त्+आ। भोक्ता।
यहां पूर्वोक्त 'भुज्' धातु से भविष्यत्काल में 'अनद्यतने लुट्' (३।३।१५) से 'लुट्' प्रत्यय होता है। 'स्यतासी लुलुटो:' (३।१।३३) से तास्' विकरण-प्रत्यय है। लुट: प्रथमस्य डारौरसः' (२।४।८५) से त-प्रत्यय के स्थान में डा आदेश होता है। वा०-डित्यभस्यापि टेर्लोप:' (६।४।१४३)) से तास्’ के टि-भाग (आस्) का लोप होता है। 'पुगन्तलघूपधस्य च' (७।३।८६) से 'भुज्' धातु को लघूपध गुण होता है। लट्,लृट्+लुट्
(४) किंवृत्ते लिप्सायाम्।६। प०वि०-किंवृत्ते ७ १ लिप्सायाम् ७।१।
स०-किमो वृत्तमिति किंवृत्तम्, तस्मिन्-किंवृत्ते (षष्ठीतत्पुरुषः)। लब्धुमिच्छा लिप्सा, तस्याम्-लिप्सायाम्।
अनु०-भविष्यति, लट्, विभाषा इति चानुवर्तते । अन्वय:-किंवृत्ते धातोर्भविष्यति विभाषा लट् लिप्सायाम्।
अर्थ:-किंवृत्ते किंवृत्ते शब्दे उपपदे धातोः परो भविष्यति काले विकल्पेन लट् प्रत्ययो भवति, लिप्सायां गम्यमानायाम्, पक्षे लुट्लुटौ प्रत्ययौ भवतः।
उदा०-कं भवन्तो भोजयन्ति (लट)। कं भवन्तो भोजयिष्यन्ति (लुट) । कं भवन्तो भोजयितारः (लुट्) । लब्धुकाम: कश्चित् पृच्छाति-कतरो भिक्षां ददाति (लट्)। कतरो भिक्षां दास्यति (लुट्) । कतरो भिक्षां दाता (लुट)। कतमो भिक्षां ददाति (लट्)। कतमो भिक्षां दास्यति (लुट्) । कतमो भिक्षां दाता (लुट)।
आर्यभाषा-अर्थ-(किवृत्ते) किम् से बना हुआ कोई शब्द उपपद होने पर (धातो:) धातु से परे (भविष्यति) भविष्यत्काल में (विभाषा) विकल्प से (लट्) लट्) प्रत्यय होता है, यदि वहां (लिप्सायाम्) लिप्सा अर्थ प्रकट हो। लिप्सा-प्राप्ति की इच्छा।
उदा०-कं भवन्तो भोजयन्ति (लट्)। कं भवन्तो भोजयिष्यन्ति (लट्)। कं भवन्तो भोजयितार: (लुट्)। आप किसे भोजन करायेंगे। कोई भोजनप्राप्ति का इच्छुक
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