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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
उदा० - मुण्ड: - मुण्डं करोति - मुण्डयति । मिश्रः - मिश्रं करोतिमिश्रयति । श्लक्षण: - श्लक्षणं करोति श्लक्षणयति । लवणम्-लवणं करोति-लवणयति । व्रतम् (व्रताद्भोजने तन्निवृत्तौ च ) व्रतं करोति-व्रतयति । पयो व्रतयति ब्राह्मणः। वृषलान्नं व्रतयति ब्राह्मणः । वस्त्रम् (वस्त्रात् समाच्छादने) । वस्त्रं करोति - संवस्त्रयति । हलि : हलिं गृह्णाति हलयति । कलि:- कलिं गृह्णाति-कलयति । कृतम्-कृतं गृह्णाति-कृतयति । तूस्तम्- तूस्तानि विहन्ति - विस्तूस्तयति केशान् भिक्षुः ।
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आर्यभाषा-अर्थ- (कर्मणः) कर्मभूत (मुण्ड०तूस्तेभ्यः) मुण्ड, मिश्र, श्लक्षण, लवण, व्रत, वस्त्र, हल, कल, कृत, तूस्त शब्दों से परे (करणे) करोतिविशेष (करना विशेष } अर्थ में (वा) विकल्प से ( णिच्) णिच् प्रत्यय होता है ।
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उदा०-मुण्ड-मुण्डं करोति - मुण्डयति । मुण्डन करता है। मिश्र - मिश्रं करोति-मिश्रयति । मिश्रण करता है। श्लक्षण- श्लक्षणं करोति - श्लक्षणयति । निर्मल करता है। लवण-लवणं करोति- लवणयति । नमकीन बनाता है। व्रत (भोजन करना अथवा उससे निवृत्त होना) व्रतं करोति - व्रतयति । पयो व्रतयति ब्राह्मणः । ब्राह्मण दुग्धपान का व्रत करता है। वृषलान्नं व्रतयति ब्राह्मण: । ब्राह्मण नीच के अन्न का वर्जन (त्याग) करता है। वस्त्र ( समाच्छादन) वस्त्रं करोति-संवस्त्रयति । वस्त्र धारण करता है अथवा वस्त्र से ढकता है । हलि-हलिं गृह्णाति - हलयति । बड़े हल को पकड़ता है। महद्हलम् = [=हलिः । कलि- कलिं गृह्णाति - कलयति । कलि नामक पासे को ग्रहण करता है । कृत-कृतं गृह्णाति - कृतयति । कृत नामक पासे को ग्रहण करता है । तूस्त - तूस्तानि विहन्ति - वितस्तयति केशान् भिक्षुः । भिक्षु जटीभूत केशों को अलग-अलग करता है।
सिद्धि - (१) मुण्डयति । मुण्ड + अम् + णिच् । मुण्ड + इ । मुण्डि । मुण्डि+लट् । मुण्डि + शप् + तिप् । मुण्डे + अ+ति । मुण्डयति ।
यहां कर्मभूत 'मुण्ड' शब्द से करोति - विशेष अर्थ में इस सूत्र से णिच् प्रत्यय है । णिजन्त मुण्ड धातु से 'वर्तमाने लट्' (३ । २ । १२३) से वर्तमानकाल में लट् प्रत्यय है। 'सार्वधातुकार्धधातुकयोः' (७।३।८४) से अङ्ग को गुण होता है। ऐसे ही मिश्रयति आदि पद सिद्ध करें ।
विशेष-हलयति । कलयति । इसी सूत्र में निपातन से हलि और कलि शब्द अकारान्त हैं। गन्ना बोते समय हल के मुख के दोनों ओर गण्डीरी बांधने पर जो हल बड़ा हो जाता है उसे 'हलि' कहते हैं । हल दो प्रकार के हैं। बड़ा हल जुताई में और छोटा हल बुवाई के काम आता है। द्यूतक्रीडा में पांच पासों का प्रयोग किया जाता है उनके नाम ये हैं- अक्षराज, कृत, त्रेता, द्वापर, कलि । यहां कलि और कृत पासे का उल्लेख किया गया है । ये अक्ष और शलाका के आकार के होते हैं।
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