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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा-अर्थ-(कर्मणः) कर्मभूत (नमोवरिवश्चित्रड:) नमस, वरिवस् और चित्रङ् शब्दों से परे (करणे) करोति विशेष अर्थ में (वा) विकल्प से (क्यच्) क्यच् प्रत्यय होता है।
उदा०-नमस् (पूजा करना) । नमः करोति-नमस्यति । नमस्यति देवान् । देवताओं की पूजा करता है। वरिवस् (सेवा करना)। वरिवः करोति-वरिवस्यति । वरिवस्यति गुरून् । गुरुजनों की सेवा करता है। चित्रङ् (आश्चर्य करना) चित्रं करोति-चित्रीयते देवदत्तः। देवदत्त आश्चर्य करता है।
सिद्धि-चित्रीयते । चित्र+अम्+क्यच् । चित्र+य। चित्री+य । चित्रीय। चित्रीय+लट् । चित्रीय+शप्+त। चित्रीय+अ+ते। चित्रीयते।
___यहां चित्र शब्द से आश्चर्य अर्थ में इस सूत्र से क्यच् प्रत्यय है। क्यचि च (७।४।३३) से अङ्ग को ई-आदेश होता है। 'चित्र' शब्द से डित् होने से 'अनुदात्तडित आत्मनेपदम् (१।३।१२) से आत्मनेपद होता है। अन्यत्र परस्मैपद ही होता है। ऐसे ही-नमस्यति, वरिवस्यति।
विशेष-क्यच्, क्यङ् और क्यष् ये तीन प्रत्यय हैं। इनमें ककार अनुबन्ध न: क्ये (१।४।१५) में समानरूप से तीनों के ग्रहण करने के लिए है। क्यच में चकार अनुबन्ध 'क्यचि च' (७।४।३३) से ईत्व विधान के लिए है, चित:' (६।१।१६३) के लिये नहीं, क्योंकि 'धातो:' (६।१।१५६) से धातु अन्तोदात्त होता ही है। क्यङ् में डकार अनुबन्ध 'अनुदात्तडित आत्मनेपदम् (१।३।१२) से आत्मनेपदविधि के लिये है। क्यष में षकार अनुबन्ध वा क्यष:' (१।३ ।९०) से विकल्प से परस्मैपदविधि के लिये है। णिङ् (करणविशेषे)
(१६) पुच्छभाण्डचीवराण्णिङ्।२०। प०वि०-पुच्छ-भाण्ड-चीवरात् ५।१ णिङ् १।१।
स०-पुच्छं च भाण्डं च चीवरं च एतेषां समाहार: पुच्छ-भाण्डचीवरम्, तस्मात्-पुच्छभाण्डचीवरात् (समाहारद्वन्द्व:)।
अनु०-वा, कर्मणः, करणे इति चानुवर्तते । अन्वय:-कर्मण: पुच्छभाण्डचीवरात् करणे वा णिङ् ।
अर्थ:-कर्मभूतेभ्य: पुच्छभाण्डचीवरेभ्य: शब्देभ्य: करणे करोति विशेषेऽर्थे विकल्पेन णिङ् प्रत्ययो भवति।
उदा०-पुच्छादुदसने पर्यसने वा। पुच्छमुदस्यति पर्यस्यति
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