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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा-अर्थ-(सनाशंसभिक्ष:) सन्नत धातु और आशंस तथा भिक्ष् (धातो:) धातु से परे (वर्तमाने) वर्तमानकाल में (उ:) उ-प्रत्यय होता है, यदि इन धातुओं का कर्ता (तच्छील०) तच्छीलवान्, तद्धर्मा वा तत्साधुकारी हो।
उदा०-(सन्नन्त:) चिकीर्षः। करने का इच्छुक । जिहीर्षः। हरने का इच्छुक । (आशंस) आशंसुः । इच्छुक । (भिक्ष्) भिक्षुः । भिक्षाधर्मा।
सिद्धि-(१) चिकीर्षुः । यहां प्रथम डुकृञ् करणे (तना०3०) धातु से 'धातो: कर्मण: समानकर्तकादिच्छायां वा' (३।१।७) से सन्' प्रत्यय होता है। सन्नन्त चिकीर्ष' धातु से इस सूत्र से 'उ' प्रत्यय होता है। चिकीर्ष' की सिद्धि 'धातोः कर्मण:०' (३।१।७) में देख लेवें।
(२) जिहीर्षुः । हृञ् हरणे' (भ्वा०उ०) पूर्ववत् ।
(३) आशंसुः। 'आङः शसि इच्छायाम्' (भ्वा०आ०)। 'इदितो नुम् धातो:' (७।१।५८) से नुम्' आगम होता है।
(४) भिक्षुः । भिक्ष भिक्षायामलाभे लाभे च' (भ्वा०आ०)! उः (निपातनम्)
(२) विन्दुरिच्छुः।१६६ । प०वि०-विन्दु: १।१ इच्छु: १।१। अनु०-उरित्यनुवर्तते।
अर्थ:-विन्दुः, इच्छु:-इत्येतौ शब्दौ उ-प्रत्ययान्तौ वर्तमाने काले निपात्येते, तच्छीलादिषु कर्तृषु।
उदा०-विन्दुः, वेदनशीलः । इच्छु:, एषणशील: ।
आर्यभाषा-अर्थ-(विन्दुरिच्छु:) विन्दु और इच्छु शब्द (उ:) उ-प्रत्ययान्त (वर्तमाने) वर्तमानकाल में निपातित किये हैं, यदि इनकी धातु का कर्ता (तच्छील०) तच्छीलवान्, तद्धर्मा वा तत्साधुकारी हो।
उदा०-विन्दुः । ज्ञानशील। इच्छु: । इच्छाशील।
सिद्धि-(१) विन्दुः । यहां विद ज्ञाने' (अदा०प०) धातु से इस सूत्र से 'उ' प्रत्यय है और 'इदितो नुम् धातो:' (७।१।५८) से अप्राप्त नुम्' आगम इस निपातन से किया जाता है।
(२) इच्छुः । यहां 'इषु इच्छायाम् (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से 'उ' प्रत्यय है। 'इषुगमियमां छ:' (७/३७७) से अप्राप्त छ' आदेश इस निपातन से किया जाता है।
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