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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा - अर्थ - ( इण्नश्जिसर्तिभ्यः ) इण्, नश्, जि, सर्ति (धातोः) धातुओं से परे (वर्तमाने) वर्तमानकाल में (क्वरम् ) क्वरप् प्रत्यय होता है, यदि इन धातुओं का कर्ता ( तच्छील०) तच्छीलवान्, तद्धर्मा वा तत्साधुकारी हो । २७२ उदा०- - (इण्) इत्वरः । गमनशील । इत्वरी (स्त्री) । (नश्) नश्वरः । विनाशशील । नश्वरी (स्त्री) । (जि.) जित्वरः । जीतने में कुशल । जित्वरी (स्त्री) । (सर्ति) सृत्वरः । गतिशील। सृत्वरी (स्त्री) । सिद्धि-(१) इत्वरः । यहां 'इण् गतौं' (अदा०प०) धातु से इस सूत्र से 'क्वरप्' प्रत्यय है । 'क्वरप् प्रत्यय के कित् होने से 'क्ङिति च' (१1१14 ) से प्राप्त गुण का प्रतिषेध होता है और प्रत्यय के पित् होने से 'ह्रस्वस्य पिति कृति तुक्' (६ |१/६९) से 'इण्' धातु को 'तुक्' आगम होता है। यहां सर्वत्र स्त्रीलिङ्ग में 'टिड्ढाणञ्०' (४ 1१1१५) से 'ङीप् ' प्रत्यय होता है- इत्वरी । (२) नश्वर: । णश अदर्शने' (दि०प०) । (३) जित्वरः । 'जि जयें (भ्वा०प०) पूर्ववत् तुक् आगम होता है। (४) सत्वरः । सृ गतौ (भ्वा०प०) पर्ववत् तुक् आगम होता है। क्वरप् (निपातनम् ) - (२) गत्वरश्च ॥ १६४ ॥ प०वि० - गत्वरः १ । १ च अव्ययपदम् । अनु०-क्वरप् इत्यनुवर्तते । अर्थ :- गत्वर इति च क्वरप्-प्रत्ययान्तो वर्तमाने काले निपात्यते, तच्छीलादिषु कर्तृषु । उदा० - गत्वरः । आर्यभाषा - अर्थ - (गत्वर: ) गत्वर शब्द (च) भी (क्वरम् ) क्वरप् प्रत्ययान्त (वर्तमाने) वर्तमानकाल में निपातित किया है, यदि इस की धातु का कर्ता ( तच्छील०) तच्छीलवान्, तद्धर्मा वा तत्साधुकारी हो । उदा० - गत्वरः । गमनशील । सिद्धि-गत्वरः । यहां 'गम्लृ गतौ' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से 'क्वरप्' प्रत्यय है । 'अनुनासिकस्य क्विझलो: क्ङिति ( ६ । ४ । १५) से अप्राप्त अनुनासिक - लोप, इस निपातन से किया जाता है अनुनासिक - लोप के पश्चात् 'हस्वस्य पिति कृति तुक्' ( ६ 1१/६९ ) से धातु को 'तुक्' आगम होता है। । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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