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________________ २५८ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् वुञ्' प्रत्यय होता है। जेरनिटिं' (६।११५१) से णिच् का लोप हो जाता है। ऐसे ही-परिदेवकः। (२) आक्रोशकः । आङ् उपसर्गपूर्वक 'क्रुश आहाने, रोदने च' (भ्वा०प०)। पुगन्तलघूपधस्य च' (७।३।८६) से कुश्' धातु को लघूपध गुण होता है। ऐसे ही-परिक्रोशकः। युच (१) चलनशब्दार्थादकर्मकाद् युच।१४८| प०वि०-चलन-शब्दार्थात् ५ ।१ अकर्मकात् ५।१ युच् १।१ । स०-चलनं च शब्दश्च तौ चलनशब्दौ, अर्थश्च अर्थश्च तौ अर्थी, चलनशब्दावाँ यस्य स:-चलनशब्दार्थ:, तस्मात्-चलनशब्दार्थात् (इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भितबहुव्रीहि:)। न विद्यते कर्म यस्य स:-अकर्मक:, तस्मात्-अकर्मकात् (बहुव्रीहि:)। अन्वय:-अकर्मकाच्चलनशब्दार्थाद् धातोर्वर्तमाने युच् तच्छीलादिषु । अर्थ:-अकर्मकेभ्यश्चलनार्थेभ्य: शब्दार्थेभ्यश्च धातुभ्य: परो वर्तमाने काले युच् प्रत्ययो भवति, तच्छीलादिषु कर्तृषु। उदा०-(चलनार्थ:) चलन: । चोपन: । (शब्दार्थ:) शब्दनः । रवणः । आर्यभाषा-अर्थ-(अकर्मकात्) अकर्मक (चलनशब्दार्थात्) चलनार्थक और शब्दार्थक (धातो:) धातुओं से परे (वर्तमाने) वर्तमानकाल में (युच्) युच् प्रत्यय होता है, यदि इन धातुओं का कर्ता (तच्छील०) तच्छीलवान् तद्धर्मा और तत्साधुकारी हो। उदा०-(चलनार्थ) चलनः । गतिशील। चोपनः । मन्द-गतिशील। (शब्दार्थ:) शब्दनः । शब्दशील। रवणः । शब्दशील। सिद्धि-(१) चलनः । यहां अकर्मक चल गतौ (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से 'युच्’ प्रत्यय है। युवोरनाको' (७।१।१) से 'यु' के स्थान में 'अन' आदेश होता है। (२) चोपनः । 'चुप मन्दायां गतौ' (भ्वा०प०)। (३) शब्दनः । शब्द शब्दने (चु०प०)। रनिटि' (६/४/५१) से चुरादि णिच् प्रत्यय का लोप होता है। (४) रवणः । रु शब्द' (अदा०आ०)। 'सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७।३।८४) से 'रु' धातु को गुण और एचोऽयवायाव:' (६।१।७५) से 'अव्' आदेश होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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