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________________ तृतीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः २४१ अर्थ:-इधारिभ्यां धातुभ्यां परो वर्तमाने काले शतृ प्रत्ययो भवति, यदि तयोः कर्ताऽकृच्छ्री (सुखी) भवति । उदा०-(इङ्) अधीयन् पारायणम्। (धारि) धारयन् उपनिषदम् । ___ आर्यभाषा-अर्थ-(इधार्योः) इङ् और धारि (धातो:) धातु से परे (वर्तमाने) वर्तमानकाल में (शतृ) शतृ प्रत्यय होता है, यदि उन धातुओं का कर्ता (अकृच्छ्री) सुखी हो, सुखपूर्वक उक्त क्रियाओं का करनेवाला हो। उदा०-(इङ्) अधीयन् पारायणम् । पारायण नामक ग्रन्थ का सुखपूर्वक अध्ययन करनेवाला। (धारि) धारयन् उपनिषदम् । उपनिषद् (रहस्य) का सुखपूर्वक धारण-अवस्थित रखनेवाला। सिद्धि-(१) अधीयन् । अधि+इड्+शतृ। अधि+इ+अत्। अधि+इ+o+अत् । अधि+इयङ्+अत्। अधीयत्+सु। अधीय नुम् त्+सु। अधीयन्त्+सु। अधीयन्। यहां नित्य 'अधि' उपसर्ग पूर्वक 'इङ् अध्ययने (अदा०आ०) धातु से इस सूत्र से 'शत' प्रत्यय है। यहां शत' प्रत्यय परे होने पर कर्तरि शप् (३।११६२) से 'श' विकरण-प्रत्यय और 'अदिप्रभृतिभ्यः शप:' (२।४।७२) से 'शप्' का लुक् होता है। 'अचि अनुधातुभ्रवां०' (६।४।७७) से 'इङ्' को 'इयङ्' आदेश होता है। 'शत' प्रत्यय के 'उगित्' होने से उगिदचां सर्वनामस्थानेऽधातो:' (७।१।७०) से नुम्' आगम, हल्डन्याब्भ्यो०' (६।१।६६) से सु' का लोप और संयोगान्तस्य लोप:' (८।२।२३) से 'संयोगान्त' त् का लोप होता है। (२) धारयन् । यहां 'धृङ् अवस्थाने (तु०आ०) धातु से प्रथम स्वार्थ में णिच्’ प्रत्यय और पश्चात् णिजन्त 'धारि' धातु से इस सूत्र से शतृ' प्रत्यय है। शेष कार्य 'अधीयन् के समान है। शतृ (२) द्विषोऽमित्रे|१३१ प०वि०-द्विष: ५ ।१ अमित्रे ७।१ । स०-न मित्रमिति अमित्रम्, तस्मिन्-अमित्रे (नञ्तत्पुरुषः)। अनु०-वर्तमाने, शतृ इति चानुवर्तते। अन्वय:-द्विषो धातोर्वर्तमाने शत, अमित्रे कतरि । अर्थ:-द्विषो धातो: परो वर्तमाने काले शतृ प्रत्ययो भवति, यदि तस्यामित्रं कर्ता भवति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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