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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी- प्रवचनम् उदा० - कश्चित् कञ्चित् पृच्छति - किम् अगच्छद् देवदत्त: (लङ् ) ? किं जगाम देवदत्तः (लिट्) ? किम् अयजद् देवदत्त: (लङ् ) ? किम् इयाज देवदत्त: (लिट् ) ? २२८ आर्यभाषा - अर्थ - (आसन्नकाले) समीप-काल विषयक ( प्रश्ने) पूछने पर (परोक्षे) इन्द्रियों के विषय से दूर (अनद्यतने) आज को छोड़कर (भूते) भूतकाल अर्थ में विद्यमान (धातोः) धातु से परे (लङ्) लङ् (च) और (लिट्) लिट् प्रत्यय होता है। उदा० - कोई किसी से पूछता है - किम् अगच्छद् देवदत्तः (लङ् ) ? किं जगाम देवदत्त: ( लिट् ) ? क्या देवदत्त चला गया ? किम् अयजद् देवदत्तः (लङ् ) ? किम् इयाज देवदत्तः (लिट् ) ? क्या देवदत्त ने यज्ञ किया ? सिद्धि - (१) अगच्छत् । गम्+लङ् । अट्+ गम् + तिप् । अट्+गम्+शप्+ति । अ+गच्छ्+अ+त् । अगच्छत् । यहां आसन्नकाल विषयक प्रश्न करने पर परोक्ष अनद्यतन भूतकाल अर्थ में 'गम्लृ गतौ (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से 'लङ्' प्रत्यय है । 'कर्तरि शप्' (३।१।६८) से 'शप्' प्रत्यय और 'ईषुगमियमां छ: ' ( ७।३।७७) से 'गम्' के म् को छ् आदेश होता है। शेष कार्य 'अकरोत्' (३ । २ । १११) के समान है। (२) जगाम । यहां पूर्वोक्त अर्थ में पूर्वोक्त 'गम्' धातु से इस सूत्र से 'लिट्' प्रत्यय है। 'अत उपधायाः' (७ । २ । १६६ ) से 'गम्' को उपधावृद्धि होती है। शेष कार्य 'चकार' (३ / २ / ११५ ) के समान है। लट् (१) लट् स्मे । ११८ प०वि० - लट् १ । १ स्मे ७ । १ । अनु०- भूते, अनद्यतने, परोक्षे इति चानुवर्तते । अन्वयः - स्मे उपपदे परोक्षेऽनद्यतने भूते धातोर्लट् । अर्थः- स्म - शब्दे उपपदे परोक्षेऽनद्यतने भूते कालेऽर्थे वर्तमानाद् धातोः परो लट् प्रत्ययो भवति । लिटोऽपवादः । उदा०-नडेन स्म पुरा अधीयते। ऊर्णया स्म पुरा अधीयते I आर्यभाषा - अर्थ - (स्मे) स्म शब्द उपपद होने पर (परोक्षे ) इन्द्रियों के विषय से दूर ( अनद्यतने) आज को छोड़कर (भूते) भूतकाल अर्थ में विद्यमान (धातो: ) धातु से परे (लट्) लट्प्रत्यय होता है। यह 'परोक्षे लिट्' (३।२1११५) का अपवाद है। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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