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तृतीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः उदा०-नडेन स्म पुरा अधीयते । प्राचीनकाल में नड ऋषि ने अध्ययन किया। ऊर्णया स्म पुरा अधीयते । प्राचीनकाल में ऊर्णा ऋषिका ने अध्ययन किया।
सिद्धि-अधीयते । अधि+इड्+लट् । अधि+इ+त। अधि+इ+यक्+त। अधीयते।
यहां 'स्म' शब्द उपपद होने पर परोक्ष अनद्यतन भूतकाल अर्थ में अधि-उपसर्गपूर्वक इङ् अध्ययने (अदा०आ०) धातु से कर्मवाच्य में इस सूत्र से लट्' प्रत्यय है। सार्वधातुके यक् (३।१।६७) से कर्मवाच्य में यक्’ विकरण-प्रत्यय और टित आत्मनेपदानां टेरे (३।४।७९) से त' के टि-भाग को 'ए' आदेश होता है।
लट्
(२) अपरोक्षे च।११६। प०वि०-अपरोक्षे ७।१ च अव्ययपदम् । स०-न परोक्षमिति अपरोक्षम्, तस्मिन्-अपरोक्षे (नञ्तत्पुरुषः)। अनु०-भूते, अनद्यतने, लट् स्मे इति चानुवर्तते । अन्वय:-स्मे उपपदेऽपरोक्षेऽनद्यतने भूते धातोर्लङ् ।
अर्थ:-स्म-शब्दे उपपदेऽपरोक्षे चानद्यतने भूते कालेऽर्थे वर्तमानाद् धातो: परो लट् प्रत्ययो भवति।
उदा०-एवं स्म पिता ब्रवीति । इति स्मोपाध्याय: कथयति।।
आर्यभाषा-अर्थ-(स्मे) स्म शब्द उपपद होने पर (अपरोक्षे) प्रत्यक्ष विषय होने पर (च) भी (अनद्यतने) आज को छोड़कर (भूते) भूतकाल अर्थ में विद्यमान (धातो:) धातु से परे (लट्) लट् प्रत्यय होता है।
उदा०-एवं स्म पिता ब्रवीति। पिताजी ऐसा कहते थे। इति स्मोपाध्याय: कथयति । उपाध्याय जी ऐसा कहते थे।
सिद्धि-(१) ब्रवीति । ब्रू+लट् । ब्रू+तिप्। ब्रू+शप्+इट्+ति। ब्रू+o+ई+ति। ब्रो+ई+ति। ब्र+ई+ति। ब्रवीति ।
यहां स्म' शब्द उपपद होने पर प्रत्यक्ष विषय में, अनद्यतन भूतकाल अर्थ में बूझ व्यक्तायां वाचि' (अदा०उ०) धातु से इस सूत्र से लट्' प्रत्यय है। अदिप्रभृतिभ्यः शप:' (२।४।७२) से 'शप्' का लुक, 'ब्रुव ईट्' (७।२।९३) से 'ईट्' आगम, 'सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७।३।८४) से ब्रू' को गुण और 'एचोऽयवायावः' (६।११७५) से अव् आदेश होता है।
(२) कथयति। कथ वाक्यप्रबन्धे' (चु०प०)।
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