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________________ तृतीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः २२५ प्राह-अभिजानासि देवदत्त ! यत् कश्मीरेषु वत्स्यामः, तत्रौदनं भोक्ष्यामहे (तृट)। यत्-शब्दरहिते यज्ञदत्त: प्राह-अभिजानासि देवदत्त ! कश्मीरेषु अवसाम, तत्रौदनमभुञ्जमहि (पक्षे लङ्)। यत्-शब्दसहिते-यज्ञदत्त: प्राह-अभिजानासि देवदत्त ! यत् कश्मीरेषु अवसामः, तत्रौदनमभुमहि (पक्षे लङ्)। ___आर्यभाषा-अर्थ-यत्-शब्द से रहित अथवा यत्-शब्द सहित (अभिज्ञावचने) पूर्व स्मृति-कथन उपपद होने पर (अनद्यतने) आज को छोड़कर (भूते) भूतकाल अर्थ में (धातो:) धातु से परे (विभाषा) विकल्प से (लुट्) लृट्-प्रत्यय होता है। पक्ष में लङ् होता है (साकाक्षे) यदि प्रयोक्ता साकाङ्क्ष हो। उदा०-(यत्-शब्दरहित)-यज्ञदत्त: प्राह-अभिजानासि देवदत्त: ! वयं कश्मीरेषु वत्स्यामः, तत्रौदनं भोक्ष्यामहे (लुट्) । यज्ञदत्त कहता है-याद है देवदत्त ! हम कश्मीर में रहते थे और वहां ओदन (भात) खाते थे। यत्-शब्द सहित। यज्ञदत्त: प्राह-अभिजानासि देवदत्त! यद् वयं कश्मीरेषु वत्स्यामः, तत्रौदनं भोध्यामहे (लङ्)। यज्ञदत्त कहता है-याद है देवदत्त ! कि हम कश्मीर में रहते थे और वहां ओदन (भात) खाते थे। यत्-शब्दरहित। यज्ञदत्त: प्राह-अभिजानासि देवदत्त ! वयं कश्मीरेषु अवसाम, तत्रौदनमभुमहि (लङ्)। यज्ञदत्त कहता है कि याद है देवदत्त ! हम कश्मीर में रहते थे और वहां ओदन खाते थे। यत्-शब्दसहित-यज्ञदत्त: प्राह-अभिजानासि देवदत्त ! यद् वयं कश्मीरेषु अवसाम, तत्रौदनम् अभुमहि (लङ्)। यज्ञदत्त कहता है-याद है देवदत्त ! कि हम कश्मीर में रहते थे और वहां ओदन खाते थे।। सिद्धि-(१) भोक्ष्यामहे । भुज+लृट् । भुज्+स्य+महिङ्। भोज्+स्य+महे। भोग्+स्य+महे। भोक्+ष्या+महे। भोक्ष्यामहे। यहां अभिज्ञावचन उपपद होने पर 'भुज पालनाभ्यवहारयोः' (रुधा०आ०) धातु से इस सूत्र से अनद्यतन भूतकाल में लृट् प्रत्यय है। तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से लुट्' के स्थान में महिङ्' आदेश, 'स्यतासी ललुटो:' (३।१।३३) से 'स्य' प्रत्यय, 'टित आत्मनेपदानां टेरे' (३।४।७९) से महिङ्' के टि-भाग को एत्व, चो: कुः' (८।२।३०) से 'भुज्' के ज्' को कुत्व ग्, 'खरि च' (८।४।५४) से ग् को क्, 'आदेशप्रत्यययोः' (८।३।५९) से षत्व और 'अतो दीर्घो यनि' (७।३।१०१) से 'स्य' को दीर्घ होता है। (२) अभुङ्ग्महि । भुज+लङ्। अट्+भुज+महिङ् । अ+भु श्नम् ज्+महि । अ+भु न ज्+महि। अ+भु+महि। अ+भुज+महि । अ+भु+महि। अभुङ्ग्महि। यहां अभिज्ञावचन उपपद होने पर पूर्वोक्त भुज् धातु से इस सूत्र से विकल्प पक्ष में अनद्यतन भूतकाल में लड्' प्रत्यय है। लङ्लुङ्लुङ्वडुदात्तः' (६।४ १७१) से 'अट्' आगम, तिप्तझि०' (३।४।७८) से लङ्' के स्थान में महिए' आदेश, माविमः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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