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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-बुद्धिजः। यहां गुणवाची पञ्चम्यन्त 'बुद्धि' शब्द उपपद होने पर पूर्वोक्त 'जन्' धातु इस सूत्र से 'ड' प्रत्यय है। शेष कार्य 'उपसरज:' (३/२/९७ ) के समान है। ऐसे ही - संस्कारज:, दुःखजः । २१२ # (३) उपसर्गे च संज्ञायाम् । ६६ । प०वि० - उपसर्गे ७ । १ च अव्ययपदम् संज्ञायाम् ७ । १ । अनु० - जने:, डः, भूते इति चानुवर्तते । अन्वयः-उपसर्गे उपपदे जनेर्धातोर्डः संज्ञायां भूते । अर्थ:-उपसर्गे चोपपदे जनि - धातोः परो ड :- प्रत्ययो भवति, संज्ञायां विषये, भूते काले । उदा०-प्रकर्षेण जाता इति प्रजा । अथेमा मानवी: प्रजा: । में । आर्यभाषा - अर्थ - (उपसर्गे) उपसर्ग उपपद होने पर (च) भी ( जने:) जन् (धातोः) से परे (ड) ड-प्रत्यय होता है, (संज्ञायाम् ) संज्ञा विषय में (भूते) भूतकाल उदा० - प्रकर्षेण जाता इति प्रजा । प्रधानता से उत्पन्न होनेवाली । अथेमा मानवी: प्रजा: । यह मानवी प्रजा है। धातु सिद्धि-प्रजा । यहां 'प्र' उपसर्ग उपपद होने पर पूर्वोक्त 'जन्' धातु से इस सूत्र से 'ड' प्रत्यय है । स्त्रीलिङ्ग में 'अजाद्यतष्टाप्' (४/१/४) से 'टाप्' प्रत्यय होता है। प्रज+टाप् + सु =प्रजा । शेष कार्य 'उपसरज:' ( ३/२/९७) के समान है। ड: (४) अनौ कर्मणि । १०० । प०वि० - अनौ ७ । १ कर्मणि ७ । १ । अनु० - जने:, डः, भूते इति चानुवर्तते । अन्वयः-कर्मण्युपपदेऽनौ जनेर्धातोर्डो भूते । अर्थ:-कर्मणि कारके उपपदेऽनुपूर्वाज्जनिधातोः परो ड-प्रत्ययो भवति, भूते काले । उदा०-पुमांसमनुजात इति पुमनुजः । स्त्रियमनुजात इति स्त्र्यनुजः । आर्यभाषा - अर्थ - (कमीण) कर्म कारक उपपद होने पर (अनौ) अनु उपसर्गपूर्वक (जने:) जन् (धातोः) धातु से परे (ङ) ड-प्रत्यय होता है (भूते) भूतकाल में । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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