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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा-अर्थ-(सुकर्मपापमन्त्रपुण्येषु) सु, कर्म, पाप, मन्त्र, पुण्य (कर्मणि) कर्म उपपद होने पर (कृञः) कृञ् (धातो: ) धातु से परे (क्विप्) क्विप् प्रत्यय होता है (भूते) भूतकाल में । २०६ उदा०- -(सु) सुष्ठु कृतवानिति सुकृत्। अच्छा बनानेवाला। (कर्म) कर्म कृतवानिति कर्मकृत् । कर्म करनेवाला। (पाप) पापं कृतवानिति पापकृत् । पाप करनेवाला। (मन्त्र) मन्त्रं कृतवानिति मन्त्रकृत् । मन्त्र बनानेवाला ईश्वर। (पुण्य) पुण्यं कृतवानिति पुण्यकृत् । शुभकर्म करनेवाला । सिद्धि-(१) सुकृत्। यहां ‘'सु' अव्यय उप होने पर 'डुकृञ् करणें' (तना० उ० ) धातु से इस सूत्र से क्विप्' प्रत्यय है । क्विप्' प्रत्यय के 'वि' का 'वेरपृक्तस्य' ( ६ 1१/६५ ) से सर्वहारी लोप हो जाता है। 'ह्रस्वस्य पिति कृति तुक्' (६ |१ |६९) से 'कृ' धातु को 'तुक्' आगम होता है। सु+कृ+तुक्+0 | सुकृत्+सु । 'हल्ङ्याब्भ्यो०' (६।१।६६) से 'सु' का लोप हो जाता है। ऐसे ही - कर्मकृत्, पापकृत्, मन्त्रकृत्, पुण्यकृत् शब्द सिद्ध करें। क्विप् (४) सोमे सुत्रः । ६० । प०वि०-सोमे ७।१ सुञः ५ ।१ । अनु०-कर्मणि, क्विप्, भूते इति चानुवर्तते । अन्वयः-सोमे कर्मण्युपपदे सुञो धातो: क्विप् भूते। अर्थ:-सोमे कर्मण्युपपदे सुञ्- धातोः परः क्विप् प्रत्ययो भवति, भूते काले । उदा० - सोमं सुतवानिति सोमसुत् । आर्यभाषा - अर्थ - (सोमे) सोम (कर्मणि) कर्म उपपद होने पर (सुञः) सुञ् (धातोः) धातु से परे (क्विप्) क्विप् प्रत्यय होता है (भूते) भूतकाल में । उदा०-सोमं सुतवानिति सोमसुत् । सोम ओषधि का रस निचोड़नेवाला । सिद्धि-सोमसुत्। यहां 'सोम' कर्म उपपद होने पर 'षुञ् अभिषवें' (रुधा० उ० ) धातु से इस सूत्र से 'क्विप्' प्रत्यय है। शेष कार्य 'सुकृत' (३ ।२।८९ ) के समान है। क्विप् (५) अग्नौ चेः । ६१ । प०वि० - अग्नौ ७ । १ चेः ५ ।१ । अनु०-कर्मणि, क्विप्, भूते इति चानुवर्तते । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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