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________________ २०० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (२) अश्राद्धभोजी। यहां 'अश्राद्ध' सुबन्त उपपद होने पर 'भुज पालनाभ्यवहारयोः' (रुधा०आ०) धातु से इस सूत्र से णिनि' प्रत्यय है। शेष कार्य उष्णभोजी' के समान है। (३) ब्रह्मचारी। यहां 'ब्रह्म' सुबन्त उपपद होने पर 'चर गतिभक्षणयो:' (भ्वा०प०) से इस सूत्र से णिनि' प्रत्यय है। 'अत उपधाया:' (७।२।११६) से चर्' धातु को उपधावृद्धि होती है। शेष कार्य उष्णभोजी' के समान है। णिनिः (४) बहुलमाभीक्ष्ण्ये।८१। प०वि०-बहुलम् ११ आभीक्ष्ण्ये ७।१। अनु०-सुपि, णिनिरिति चानुवर्तते। अन्वय:-सुप्युपपदे धातोर्बहुलं णिनिराभीक्ष्ण्ये। अर्थ:-सुबन्ते उपपदे धातोर्बहुलं णिनिः प्रत्ययो भवति, आभीक्ष्ण्ये गम्यमाने। आभीक्ष्ण्यम्, पौन:पुन्यम्, तत्परता, आसेवा इति पर्यायाः । । उदा०-कषायं पिबतीति कषायपायी। कषायपायिणो गान्धारा:। क्षीरं पिबतीति क्षीरपायी। क्षीरपायिण उशीनरा:। सौवीरं पिबतीति सौवीरपायी। सौवीरपायिणो बालीका:।। ___ आर्यभाषा-अर्थ-(सुपि) सुबन्त उपपद होने पर (धातो:) धातु से (बहुलम्) प्राय: (णिनि:) णिनिप्रत्यय होता है, यदि वहां (आभीक्ष्ण्ये) क्रिया का बार-बार होना प्रकट हो। उदा०-कषायं पिबतीति कषायपायी। कषाय रस का पान करनेवाला। कषायपायिणो गान्धारा: । गान्धार देश के लोग कषाय रस के शौकीन हैं। क्षीरं पिबतीति क्षीरपायी। दूध पीनेवाला। क्षीरपायिण उशीनराः। उशीनर प्रदेश के लोग दुग्धपान के शौकीन हैं। सौवीरं पिबतीति सौवीरपायी। सौवीर-कांजी पीनेवाला। सौवीरपायिणो बालीका: । बालीक प्रदेश के लोग सौवीर (कांजी विशेष) पीनेवाले हैं। सिद्धि-कषायपायी। यहां कषाय' सुबन्त उपपद होने पर पा पाने' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से णिनि' प्रत्यय है। आतो युक् चिण्कृतो:' (७।३।३३) से युक्' आगम होता है। शेष कार्य 'उष्णभोजी' के समान है। ऐसे ही-क्षीरपायी और सौवीरपायी। विशेष-(१) गन्धार । गन्धार महाजनपद कुनड़ (काश्कर) नदी से तक्षशिला तक फैला हुआ था। इसकी राजधानी पुष्कलावती थी। (२) उशीनर । रावी और चनाब के बीच का निचला भूभाग उशीनर प्रदेश कहलाता था जिसकी राजधानी शिविपुर-शोरकोट (झंग जिले की एक तहसील) थी। (३) बालीक । कंबोज के पश्चिम, वंक्षु के दक्षिण और हिन्दूकुश के उत्तर-पश्चिम का प्रदेश बालीक महाजनपद था। (पा०का० भारतवर्ष पृ० ६२, ६७) ___www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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