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________________ तृतीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः १८५ (५) गोधक। यहां 'गो' सुबन्त उपपद होने पर 'दुह प्रपूरणे (अदा०प०) धातु से इस सूत्र से क्विप्' प्रत्यय है। शेष कार्य मित्रधुक्’ के समान है। (६) अश्वयुक् । यहां 'अश्व' सुबन्त उपपद होने पर 'युजिर् योगे' (रुधा०प०) धातु से इस सूत्र से क्विप्' प्रत्यय है। चो: कुः' (८।२।३०) से 'युज्' के ज्' को कुत्व 'ग्' और 'वाऽवसाने (८।४।५५) से को चर् क् होता है। ऐसे ही-प्रयुक् । (७) वेदवित् । यहां वेद' सुबन्त उपपद होने पर विद ज्ञाने' (अदा०प०) धातु से इस सूत्र से 'क्विप्' प्रत्यय है। वाऽवसाने (८।४।५५) से 'विद्' के द् को चर् त् होता है। ऐसे ही-प्रवित् । (८) काष्ठभित्। यहां काष्ठ' सुबन्त उपपद होने पर भिदिर् विदारणे (रुधा०प०) धातु से इस सूत्र से 'क्विप्' प्रत्यय है। शेष कार्य वेदवित्' के समान है। (९) रज्जच्छित् । यहां 'रज्जु' सुबन्त उपपद होने पर छिदिर् द्वैधीकरणे (रुधा०प०) धातु से इस सूत्र से क्विप्' प्रत्यय है। शेष कार्य वेदवित्' के समान है। (१०) शत्रजित । यहां शत्रु सुबन्त उपपद होने पर जि जये' (भ्वा०प०) धातु से क्विप्' प्रत्यय है। 'हस्वस्य पिति कृति तुक्' (६।१।६९) से 'जि' धातु को तुक्' आगम होता है। ऐसे ही-प्रजित् । (११) सेनानी:। यहां सेना' सुबन्त उपपद होने पर भी प्रापणे' (भ्वा०उ०) धातु से इस सूत्र से 'क्विप्' प्रत्यय है। ऐसे ही-प्रणी:, इत्यादि। (१२) राट् । यहां राज दीप्तौ' (भ्वा०आ०) धातु से इस सूत्र से 'क्विप्' प्रत्यय है। वश्चभ्रस्ज०' (८।२।३६) से 'राज' के ज को षत्व, 'झलां जशोऽन्ते' (८।२।३९) से ए को जश् ड् और वाऽवसाने (८१४१५५) से ड्को चर् द होता है। वि उपसर्ग होने पर-विराट् । सम् उपसर्ग होने पर-सम्राट् । यहां मो राजि सम: क्वौ' (८।३।२५) से सम् के 'म्' को म् ही आदेश होता है। मोऽनुस्वारः' (८।४।२३) से अनुस्वार आदेश नहीं होता है। ण्विः (१) भजो ण्विः ।६२। प०वि०-भज: ५।१ ण्वि: ११। अनु०-सुपि, उपसर्गेऽपि इति चानुवर्तते। अन्वय:-सुप्युपसर्गेऽपि भजो धातोविः । अर्थ:-सुबन्ते उपपदे सोपसर्गान्निरुपसर्गादपि भज्-धातो: परो ण्वि: प्रत्ययो भवति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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