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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
उदा०- ( सत्) शुचौ सीदतीति शुचिषत् । शुद्ध देश में रहनेवाला । अन्तरिक्षे सीदतीति अन्तरिक्षसत् । अन्तरिक्ष में रहनेवाला। उपसीदतीति उपसत्। पास बैठनेवाला । (सू) अण्डानि सूते इति अण्डसूः । अण्डे पैदा करनेवाला प्राणी । शतं सूते इति शतसू: । सौ सन्तान उत्पन्न करनेवाला । प्रसूते इति प्रसूः । प्रसव करनेवाला । (द्विष्) मित्रं द्वेष्टीति मित्रद्विट् । मित्र से द्वेष करनेवाला । प्रद्वेष्टीति प्रद्विट् । अधिक द्वेष करनेवाला । (इ) मित्रं द्रुह्यतीति मित्रध्रुक् । मित्र से द्रोह करनेवाला । प्रद्रुह्यतीति प्रतक् । अति द्रोह करनेवाला। (दुह्) गां दोग्धीति गोधुक् । गौ को दुहनेवाला । प्रदोग्धीति प्रधुक् । उत्तम दोग्धा । (युज् ) अश्वं युनक्तीति अश्वयुक् । घोड़े को जोड़नेवाला। प्रयुनक्तीति प्रयुक् । प्रयोग करनेवाला । (विद्) वेदं वेत्तीति वेदवित् । वेद को जाननेवाला। प्रवेत्तीति प्रवित् । प्राज्ञ । ब्रह्म वेत्तीति ब्रह्मवित् । ब्रह्म को जाननेवाला । (भिद्) काष्ठं भिनत्तीति काष्ठभिद् । लकड़ी फाड़नेवाला । प्रभिनत्तीति प्रभित् । प्रभेद करनेवाला । (छिद्) रज्जुं छिनत्तीति रज्जुच्छित् । रस्सी को काटनेवाला । प्रछिनत्तीति प्रच्छित् । प्रच्छेद करनेवाला । (जि) शत्रुं जयतीति शत्रुजित् । शत्रु को जीतनेवाला। प्रजयतीति प्रजित् । प्रकर्ष से जीतनेवाला । (नी) सेनां नयतीति सेनानीः । सेना का नेता । प्रणयतीति प्रणीः । उत्तम नेता । ग्रामं नयतीति ग्रामणीः । ग्राम का नेता । अप्रं नयतीति अग्रणीः । आगे ले जानेवाला। (राज्) राजते इति । राजा । विराजते इति विराट् । बड़ा । सम्राजते इति सम्राट् । बड़ा
राजा ।
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सिद्धि - (१) शुचिषत् | यहां 'शुचि' सुबन्त उपपद होने पर 'षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से 'क्विप्' प्रत्यय है। वैरपृक्तस्य' (६ । १/६५ ) से 'क्विप्' का सर्वहारी लोप हो जाता है। 'पूर्वपदात् संज्ञायामगः' (८/४ /३) से सद् को षत्व होता है। ऐसे ही-अन्तरिक्षसत् और उपसत् ।
(२) अण्डसूः | यहां 'अण्ड' सुबन्त उपपद होने पर 'षुञ् प्राणिगर्भविमोचने (अदा० उ० ) धातु से इस सूत्र से 'क्विप्' प्रत्यय है । पूर्ववत् 'क्विप्' प्रत्यय का सर्वहारी लोप होता है। ऐसे ही - शतसू: और प्रसूः ।
(३) मित्रद्विट् । यहां 'मित्र' सुबन्त उपपद होने पर 'द्विष अप्रीतौं' (अदा०प०) धातु से इस सूत्र से 'क्विप्' प्रत्यय है। पूर्ववत् 'क्विप्' प्रत्यय का लोप होता है । 'झलां जशोऽन्ते (८ / २ /३९) से द्विष् के 'ष् ' को जश् ड् और 'वाऽवसाने' (८1४ 144 ) से 'ड्' को चर् ट् होता है। ऐसे ही प्रद्विट् ।
(४) मित्रध्रुक् । यहां मित्र' सुबन्त उपपद होने पर द्रुह अभिजिघांसायाम्' (दि०प०) धातु से इस सूत्र 'से 'क्विप्' प्रत्यय है। 'वा द्रुहदुह०' (८ | ३ | ३३) से द्रुह्' के
ह
को 'घु, झलां जशोऽन्ते' (८/२/३९ ) से घ् को जश् ग्, 'वाऽवसाने' (८/४/५५) से ग् को चर् क् होता है। 'एकाचो वशो भष्० (८ / २ / ३७ ) से 'द्रुह' के द् को भष् ध् होता
है। ऐसे ही - प्रधुक् ।
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