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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अर्थः-च्वि-प्रत्ययवर्जितेषु च्वि- अर्थेषु आढ्यसुभगस्थूलपलितनग्नान्धप्रियेषु सुबन्तेषु उपपदेषु भू-धातोः परः कर्तरि कारके खिष्णुच्-खुकञ प्रत्ययौ भवतः । १७८ उदा०-(आढ्यः) अनाढ्य आढ्यो भवतीति आढ्यम्भविष्णुः, आढ्यम्भावुकः । ( सुभगः ) असुभगः सुभगो भवतीति सुभगम्भविष्णुः, सुभगम्भावुकः । (स्थूलः) अस्थूलः स्थूलो भवतीति स्थूलम्भविष्णुः, स्थूलम्भावुकः । (पलितः ) अपलितो पलितो भवतीति पलितम्भविष्णुः, पलितम्भावुकः । ( नग्नः ) अनग्नो नग्नो भवतीति नग्नम्भविष्णुः, नग्नम्भावुकः । (अन्धः ) अनन्धोऽन्धो भवतीति अन्धम्भविष्णुः, अन्धम्भावुकः । (प्रियः) अप्रियो प्रियो भवतीति प्रियम्भविष्णुः, प्रियम्भावुकः । आर्यभाषा - अर्थ - (अच्ची) च्वि-प्रत्यय से रहित किन्तु (च्चि - अर्थेषु) च्वि-प्रत्यय के अर्थ में वर्तमान (आढ्य०प्रियेषु) आढ्य, सुभग, स्थूल, पलित, नग्न, अन्ध, प्रिय (सुपि ) इन सुबन्तों के उपपद होने पर (भुव:) भू (धातोः) धातु से परे (कर्तीर) कर्ता कारक में (खिष्णुखुकञी) खिष्णुच् और खुकञ् प्रत्यय होते हैं। उदा० - ( आढ्य ) अनाढ्य आढ्यो भवतीति आढयम्भविष्णुः, आढ्यम्भावुकः । जो धनवान् नहीं है वह धनवान् होता है । ( सुभग) असुभगः सुभगो भवतीति सुभगम्भविष्णुः, सुभगम्भावुकः । जो सुन्दर नहीं है वह सुन्दर होता है । (स्थूल) अस्थूल: स्थूलो भवतीति स्थूलम्भविष्णुः, स्थूलम्भावुकः । जो स्थूल नहीं है वह स्थूल होता है। (पलित) अपलित: पलितो भवतीति पलितम्भविष्णुः, पलितम्भावुकः । जो पलित नहीं है वह पलित होता है । पलित = श्वेतकेशी । (नग्न) अनग्नो नग्नो भवतीति नग्नम्भविष्णुः, नग्नम्भावुकः । जो नंगा नहीं है वह नंगा होता है । (प्रिय) अप्रियः प्रियो भवतीति प्रियम्भविष्णुः, प्रियम्भावुकः । जो प्रिय नहीं है वह प्रिय होता है । सिद्धि-(१) आढ्यम्भविष्णुः । यहां 'आढ्य' सुबन्त उपपद होने पर 'भू सत्तायाम्' (भ्वा०प०) धातु से खिष्णुच्' प्रत्यय है। प्रत्यय के खित् होने से 'अरुर्द्विषदजन्तस्य मुम् (६।३।६५) से आढ्य उपपद को 'मुम्' आगम होता है। 'सार्वधातुकार्धधातुकयोः' (७ 1३1९४) से 'भू' धातु को गुण हो जाता है। (२) आढ्यम्भावुकः । यहां 'आढ्य' सुबन्त उपपद होने पर पूर्वोक्त 'भू' धातु से इस सूत्र से 'खुकञ्' प्रत्यय है। प्रत्यय के 'खित्' होने से पूर्ववत् 'मुम्' आगम होता है। प्रत्यय के 'ञित्' होने से 'अचो ञ्णिति' (७ । २ । ११५ ) से 'भू' धातु को वृद्धि होती है । . ऐसे ही-सुभगम्भविष्णुः, सुभगम्भावुकः आदि । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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