SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (३) अपे क्लेशतमसोः।५०। प०वि०-अपे ७१ क्लेश-तमसो: ७।२। स०-क्लेशश्च तमश्च ते क्लेशतमसी, तयो:-क्लेशतमो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। अनु०-कर्मणि, ड:, हन इति चानुवर्तते। अन्वय:-क्लेशतमसो: कर्मणोरुपपदयोर्हनो धातोर्डः । अर्थ:-क्लेशे तमसि च कर्मणि कारके अप-उपसर्गे चोपपदे हन्-धातो: परो ड: प्रत्ययो भवति। उदा०-(क्लेश:) क्लेशम् अपहन्तीति-क्लेशापह: (पुत्रः)। (तम:) तमोऽपहन्तीति तमोऽपह: (सूर्यः) । आर्यभाषा-अर्थ-(क्लेशतमसो:) क्लेश और तमस् (कर्माण) कर्म कारक और (अपे) अप उपसर्ग उपपद होने पर (हन:) हन् (धातो:) धातु से परे (ड:) ड-प्रत्यय होता है। उदा०-(क्लेश:) क्लेशमपहन्तीति-क्लेशापहः (पुत्रः)। क्लेश-दुःख को नष्ट करनेवाला पुत्र । (तमस) तमोऽपहन्तीति तमोऽपह: (सूर्य:) । अन्धकार को नष्ट करनेवाला सूर्य। सिद्धि-क्लेशापहः। यहां क्लेश कर्म और अप उपसर्ग उपपद होने पर हन् हिंसागत्यो:' (अदा०प०) धातु से परे इस सूत्र से 'ड' प्रत्यय है। 'ड' प्रत्यय के डित्' होने से पूर्ववत् हन्' धातु के टि-भाग' (अन्) का लोप होता है। ऐसे ही-तमोऽपहः । णिनिः (१) कुमारशीर्षयोर्णिनिः ।५१ । प०वि०-कुमार-शीर्षयो: ७।२ णिनि: ११ । स०-कुमारश्च शिरश्च ते कुमारशीर्षे तयो:-कुमारशीर्षयो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-कर्मणि, हन इति चानुवर्तते। अन्वय:-कुमारशीर्षयोः कर्मणोरुपपदयोर्हनो धातोणिनिः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy