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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(क्षेम) क्षेमं करोतीति क्षेमकरः, क्षेमकारश्च । नीरोग/सुख करनेवाला। (प्रिय) प्रियं करोतीति प्रियङ्करः, प्रियकारश्च । प्रिय कार्य करनेवाला। (मद्र) मद्रं करोतीति मद्रकरः, मद्रकारश्च । मद्र राज्य की स्थापना करनेवाले सैनिक। (पा०का० भारतवर्ष ७२)
सिद्धि-(१) क्षेमकरः । यहां क्षेम कर्म उपपद होने पर 'डुकृत करणे (तना०३०) धातु से इस सूत्र से 'खच्' प्रत्यय है। क्षेम उपपद को पूर्ववत् मुम्' आगम होता है।
(२) क्षेमकारः। यहां क्षेम उपपद होने पर पूर्वोक्त 'कृ' धातु से 'अण्' प्रत्यय है। 'अण्' प्रत्यय के णित् होने से 'अचो मिति (७।२।११५) से कृ' को वृद्धि (कार) होती है।
खच्
(८) आशिते भुवः करणभावयोः ।४५। प०वि०-आशिते ७१ भुव: ५१ करण-भावयो: ७।२।
स०-करणं च भावश्च तौ करणभावौ, तयोः-करणभावयोः (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-अर्थवशात् सुपि इत्यनुवर्तते, न कर्मणि । खच् इति चानुवर्तते । अन्वयः-आशिते सुप्युपपदे भुवो धातो: खच् करणभावयोः ।
अर्थ:-आशिते सुबन्ते उपपदे भू-धातो: पर: खच् प्रत्ययो भवति, करणे कारके भावे चार्थे ।
उदा०-(करणम्) आशित: तृप्तो भवति येन स:-आशितम्भव ओदन: । (भाव:) आशितस्य भवनमिति आशितम्भवं वर्तते।
आर्यभाषा-अर्थ-(आशिते) आशित (सुपि) सुबन्त उपपद होने पर (भुव:) भू (धातो:) धातु से (खच्) खच् प्रत्यय होता है (करणभावयोः) करण कारक और भाव अर्थ में।
___ उदा०-(करण) आशित: तृप्तो भवति येन स:-आशितम्भव ओदनः । वह ओदन (भात) जिससे भोक्ता तप्त हो जाता है। (भाव) आशितस्य भवनमिति आशितम्भवं वर्तते । अब तृप्त होने की क्रिया चल रही है (भोजन चल रहा है)।
सिद्धि-आशितम्भवः । यहां 'आशित' कर्म उपपद होने पर भू सत्तायाम्' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से खच्' प्रत्यय है। 'आशित' उपपद को पूर्ववत् मुम्' आगम होता है।
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