________________
१६६
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनु०-कर्मणि, खश् इति चानुवर्तते ।
अर्थ:-सर्वकूलाभ्रकरीषेषु कर्मकारकेषु उपपदेषु कष्-धातो: पर: खच् प्रत्ययो भवति।
उदा०-(सर्व:) सर्वं कषतीति सर्वकष: (खल:)। (कूलम्) कूलं कषतीति कूलङ्कषा (नदी)। (अभ्रः) अभ्रं कषतीति अभ्रकषो गिरिः। (करीष:) करीषं कषतीति करीषकषा (वात्या)। - आर्यभाषा-अर्थ-(सर्वकूलाभ्रकरीषेषु) सर्व, कूल, अभ्र, करीष (कमणि) कर्मकारक उपपद होने पर (कष:) कष् (धातो:) धातु से परे खच्-प्रत्यय होता है।
उदा०- (सर्व) सर्वं कषतीति सर्वकषः । सबको पीड़ा देनेवाला (दुष्ट)। (कूल) कूलं कषतीति कूलङ्कषा । कूल-तट को तोड़नेवाली (नदी)। कष्' धातु हिंसार्थक है। यहां वह तोड़ने अर्थ में है, हिंसा अर्थ सम्भव न होने से “अनेकार्था हि धातवो भवन्ति" (महाभाष्यम्)। (अभ) अभं कषतीति अभंकष: । बादल को छूनेवाला (पर्वत)। यहां पूर्ववत् कष्' धातु का अर्थ छूना है। (करीष) करीषं कषतीति करीषकषा। करीष-सूखे गोबर (करस) को उड़ा ले जानेवाली (वात्या-आंधी)। यहां पूर्ववत् कष्' धातु का अर्थ उड़ा ले जाना है।
सिद्धि-(१) सर्वकषः। यहां 'सर्व' कर्म उपपद होने पर कष' हिंसार्थः' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से खच्' प्रत्यय है। पूर्ववत् मुम्' आगम होता है। ऐसे ही-कूलकषा आदि।
विशेष-पाणिनीय धातुपाठ में कष' धातु हिंसार्थक पढी है। “अनेकार्था हि धातवो भवन्ति” (महाभाष्यम्) के प्रमाण से यहां कष' धातु के हिंसा अर्थ से भिन्न अर्थ भी प्रसङ्गवश होते हैं। पाणिनीय धातुपाठ में दशयि गये अर्थ केवल उदाहरणमात्र हैं। (बहुलमेतन्निदर्शनम्, चुरादि:)। खच्
(६) मेघर्तिभयेषु कृञः।४३। प०वि०-मेघ-ऋति-भयेषु ७।३ कृत्र: ५।१।
स०-मेघश्च ऋतिश्च भयं च तानि-मेघर्तिभयानि, तेषु-मेघर्तिभयेषु (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-कर्मणि, खच् इति चानुवर्तते। अन्वय:-मेघर्तिभयेषु कर्मसूपपदेषु कृञो धातो: खच् ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org