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________________ १६५ तृतीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः खच (४) पू:सर्वयोर्दारिसहोः।४१। प०वि०-पू: सर्वयोः ७।२ दारि-सहो: ६।२ (पञ्चम्यर्थे)। स०-पूश्च सर्वश्च तौ पू:सर्वो, तयो:-पू:सर्वयोः (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। दारिश्च सह् च तौ दारिसहौ, तयो:-दारिसहो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:) । अनु०-कर्मणि, खच् इति चानुवर्तते । अन्वयः-पू:सर्वयोः कर्मणोरुपपदयोरिसहिभ्यां धातुभ्यां खच् । अर्थ:-पू:सर्वयो: कर्मकारकयोरुपपदयोर्यथासंख्यं दारिसहिभ्यां धातुभ्यां पर: खच् प्रत्ययो भवति। उदा०-(पू:) पुरं दारयतीति पुरन्दर: (इन्द्रः) । (सर्व:) सर्वं सहते इति सर्वंसह: (राजा)। आर्यभाषा-अर्थ-(पू:सर्वयोः) पुर् और सर्व (कणि) कर्म कारक उपपद होने पर यथासंख्य (दारिसहो:) णिजन्त दारि और सह (धातोः) धातुओं से परे (खच्) खच्-प्रत्यय होता है। उदा० (पुर) पुरं दारयतीति पुरन्दरः । किले को तोड़नेवाला (इन्द्र)। (सह) सर्व सहते इति सर्वसहः । सब कार्य सिद्ध करनेवाला (राजा)। सिद्धि-(१) पुरन्दरः । यहां 'पुर' कर्म उपपद होने पर णिजन्त दृ विदारणे (क्रया०प०) धातु से इस सूत्र से 'खच्' प्रत्यय है। ‘णेरनिटिं' (६।४।५१) से णिच्’ का लोप और खचि हस्व:' (६।४।९४) से 'दार' को ह्रस्व (दर) होता है। वाचंयमपुरन्दरौं (६।३।६७) से मुम्' आगम का अभाव और पुर्' शब्द अम्-प्रत्ययान्त (पुरम्) निपातित है। (२) सर्वंसहः । यहां सर्व कर्म उपपद होने पर वह मर्षणे' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से खच्' प्रत्यय है। ‘खच्' प्रत्यय के खित् होने से 'अरुषिदजन्तस्य मुम्' (६।३।६५) से 'सर्व' उपपद को 'मुम्' आगम होता है। यहां 'सह' धातु का अर्थ सिद्ध करना है, सहन करना नहीं-“अनेकार्था हि धातवो भवन्ति" (महाभाष्यम्)। खच् (५) सर्वकूलाभकरीषेषु कषः ।४२। प०वि०-सर्व-कूल-अभ्र-करीषेषु ७।३ कष: ५।१ । स०-सर्वश्च कूलं च अभ्रश्च करीषश्च ते-सर्वकूलाभ्रकरीषा:, तेषु सर्वकूलाभ्रकरीषेषु (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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