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खश् (निपातनम्) -
(६) उग्रम्पश्येरम्मदपाणिन्धमाश्च । ३७ । प०वि०-उग्रम्पश्य-इरम्मद - पाणिन्धमा : १ | ३ च अव्ययपदम् । सo - उग्रम्पश्यश्च इरम्मदश्च पाणिन्धमश्च ते - उग्रम्पश्येरम्मदपाणिन्धमाः । (इतरेतरयोगद्वन्द्वः )
अनु०-खश् इत्यनुवर्तते ।
अर्थ:- उग्रम्पश्य- इरम्मद - पाणिन्धमाः शब्दा अपि खश् - प्रत्ययन्ता निपात्यन्ते ।
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
उदा० - उग्रं पश्यतीति उग्रम्पश्यः । इरया माद्यतीति इरम्मदः । पाणयो ध्मायन्ते येषु ते पाणिन्धमाः पन्थानः।
आर्यभाषा - अर्थ - ( उग्रम्पश्य ० ) उग्रम्पश्य, इरम्मद, पाणिन्धम शब्द (च) भी (ख) खश्-प्रत्ययान्त निपातित हैं।
उदा० - उग्रं पश्यतीति उग्रम्पश्य: । क्रूर दृष्टिवाला । इरया माद्यतीति इरम्मदः । इरा=जल से समृद्ध होनेवाला वडवानल। यहां 'मद' धातु का अर्थ बढ़ना है, हर्ष सम्भव न होने से " अनेकार्था हि धातवो भवन्ति” ( महाभाष्यम्) । पाणयो ध्मायन्ते येषु ते पाणिन्धमाः पन्थान: । वे अन्धकारपूर्ण मार्ग जिनमें जानेवाले लोग कुछ भी दिखाई न देने के कारण हथेली बजाकर चलते हैं, ध्वनि को सुनते हुये ।
सिद्धि - (१) उग्रम्पश्य: । यहां 'उग्र' कर्म उपपद होने पर 'दृशिर् प्रेक्षणें (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से 'खश्' प्रत्यय है । पूर्ववत् 'शप्' विकरण- प्रत्यय है। 'पाघ्राध्मा०' (७।३।७८) से 'दृश्' के स्थान में 'पश्य' आदेश होता है। 'कर्मण्यण्' (३1२1१ ) से अण् प्रत्यय प्राप्त था, निपातन से 'खश्' प्रत्यय होता है।
(२) इरम्मद:। यहां इरा कर्म उपपद होने पर 'मदी हर्षे' (दि०प०) से इस सूत्र से 'खश्' प्रत्यय है। 'दिवादिभ्यः श्यन्' (३ । १ / ६९ ) से 'श्यन् ' विकरण- प्रत्यय था, निपातन से 'कर्तरि शप्' (३ | १ | ६८ ) से 'शप् विकरण-प्रत्यय होता है।
(३) पाणिन्धम: । यहां पाणि कर्म उपपद होने पर 'धमा शब्दाग्निसंयोगयोः' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से 'खश्' प्रत्यय है । पूर्ववत् ' शप्' विकरण- प्रत्यय और 'पाघ्राध्मा०' (३।३।७८) से 'ध्मा' के स्थान में 'धमः' आदेश होता है। यहां अधिकरण कारक में 'करणाधिकरणयोश्च' ( ३. । ३ । ११७ ) से 'ल्युट्' प्रत्यय प्राप्त था, निपातन से 'खश्' प्रत्यय होता है ।
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