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________________ १५७ तृतीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः उदा०-(नाडी) नाडी धमतीति नाडिन्धमः । नाडी (नाली) बांसुरी बजानेवाला। नाडी धयतीति नाडिन्धयः । नाली पीनेवाला (सुवर्णकार)। (मुष्टि) मुष्टिं धमतीति मुष्टिन्धमः । अपनी मुट्ठी को बजानेवाला (कलाकार)। मुष्टिं धयतीति मुष्टिन्धयः । अपनी मुट्ठी को चूमनेवाला (बालक)। सिद्धि-नाडिन्धमः, नाडिन्धय: पदों को नासिकन्धम:' आदि के समान सिद्ध करें। खश् (४) उदि कूले रुजिवहोः ।३१। प०वि०-उदि ७।१ कूले ७१ रुजि-वहो: ६।२ (पञ्चम्यर्थे)।। स०-रुजिश्च वह् च तौ रुजिवहौ, तयो:-रुजिवहो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। अनु०-कर्मणि, खश् इति चानुवर्तते । अन्वय:-कूले कर्मणि उदि चोपपदे रुजिवहिभ्यां धातुभ्यां खश् । अर्थ:-कूले कर्माण कारके उत्-उपसर्गे चोपपदे रुजिवहिभ्यां धातुभ्यां पर: खश् प्रत्ययो भवति। उदा०-(रुजि) कूलम् उद्रुजतीति कूलमुद्रुजः (रथः)। कूलम् उद्वहतीति कूलमुद्वह: (जलप्रवाह:)। आर्यभाषा-अर्थ-(कूले) कूल कर्म कारक और (उदि) उत् उपसर्ग उपपद होने पर (रुजिवहो:) रुज् और वह (धातो:) धातु से परे (खश्) खश् प्रत्यय होता है। उदा०-(रुज्) कूलम् उद्रुजतीति कूलमुगुजः (रथ:)। किनारे को तोड़नेवाला (रथ)। कूलम् उद्वहतीति कूलमुद्वहः (जलप्रवाह.)। किनारे को बहा ले जानेवाला (जलप्रवाह)। सिद्धि-कूलमुद्रुजः । यहां कूल' कर्म और उत् उपसर्ग उपपद होने पर रुजो भने (तु०प०) धातु से इस सूत्र से 'खश्' प्रत्यय है। 'खश्' प्रत्यय के सार्वधातुक होने से तुदादिभ्य: शः' (३।१।१७७) से 'श' विकरण प्रत्यय होता है। 'श' प्रत्यय के सार्वधातुकमपित' (१।२।४) से 'डित्' होने से पूगन्तलघूपधस्य च' (७।३।८६) से 'रुज्' को प्राप्त लघूपध गुण का 'क्डिति च' (१।१५) से प्रतिषेध हो जाता है। 'खश्' प्रत्यय के खित्' होने से 'अरुषिदजन्तस्य मुम्' (६।३।६७) से कूल उपपद को 'मुम्' आगम होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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