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__पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-(१) नासिकन्धमः। यहां नासिका कर्म उपपद होने पर 'मा शब्दाग्निसंयोगयो:' (भ्वा०प०) धातु से खश्' प्रत्यय है। खश्' प्रत्यय के सार्वधातुक होने से कर्तरि शप् (३।१।६२) से 'शप्' प्रत्यय होता है। 'खश्' प्रत्यय के खित्' होने से खित्यनव्ययस्य' (६।३।६६) से 'नासिका' को हस्व तथा 'अरुषिदजन्तरस्य मुम्' (६।३।६७) से नासिका को 'मुम्' आगम होता है। 'पाघ्राध्मा०' (७।३।७८) से 'मा' के स्थान में 'धम' आदेश होता है।
(२) नासिकन्धयः । यहां नासिका' कर्म उपपद होने पर 'धेट् पाने' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से खश्' प्रत्यय है। 'धेट्' धातु के 'टित्' होने से स्त्रीलिङ्ग में 'टिड्ढाणञ्' (४।१।१५) से 'डीप्' प्रत्यय होता है-नासिकन्धयी। शेष पूर्ववत् ।
(३) स्तनन्धयः । स्तनन्धयी। यहां स्तन' कर्म उपपद होने पर पूर्वोक्त 'धेट' धातु से पूर्ववत् । खश्
(३) नाडीमुष्ट्योश्च ।३०। प०वि०-नाडी-मुष्ट्यो : ७।२ च अव्ययपदम् ।
स०-नाडी च मुष्टिश्च ते नाडीमुष्टी, तयोः नाडीमुष्ट्योः (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। पाणिनिमुनिवचनाद् मुष्टिशब्दस्य 'द्वन्द्वे घि' (२।२।३२) इति न पूर्वनिपातः।
अनु०-कर्मणि खश्, ध्माधेटोरिति चानुवर्तते। अन्वयः-नाडीमुष्ट्योश्च कर्मणोरुपपदयोधेिटिभ्यां धातुभ्यां खश् ।
अर्थ:-नाडीमुष्टयोरपि कर्मणो रुपपदयोमाधेटिभ्यां धातुभ्यां पर: खश्प्रत्ययो भवति । यथासंख्यमत्र नेष्यते नाडीमुष्टिसमासे लक्षणव्यभिचारात् । उभयोरुपपदयोरुभाभ्यां धातुभ्यां खश्प्रत्ययो विधीयते।
उदा०-(नाडी) नाडी धमतीति नाडिन्धम: । नाडी धमतीति नाडिन्धयः (मुष्टि:) मुष्टिं धमतीति मुष्टिन्धम: । मुष्टिं धयतीति मुष्टिन्धयः ।
आर्यभाषा-अर्थ-(नाडीमुष्ट्योः ) नाडी और मुष्टि (कर्मीण) कर्म उपपद होने पर (च) भी (ध्माधेटो:) ध्मा और धेट् (धातो:) धातुओं से परे (खश्) खश् प्रत्यय होता है। यहां नाडीमुष्ट्योः ' पद के समास में लक्षणव्यभिचार होने से यथासंख्य प्रत्ययविधि नहीं होती है, दोनों उपपद होने पर दोनों धातुओं से खश् प्रत्यय किया जाता है।
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