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________________ १५४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा-अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में (कर्मणि) कर्म उपपद होने पर (वनसनरक्षिमथाम्) वन्, सन्, रक्ष, मथ (धातोः) धातुओं से परे (इन्) इन् प्रत्यय होता है। उदा०-(वन) ब्रह्म वनतीति ब्रह्मवनिः । ब्राह्मण वेदज्ञ विद्वान् की सेवा करनेवाला। क्षत्रं वनतीति क्षत्रवनिः । राजा की सेवा करनेवाला। ब्रह्मवनि त्वा क्षत्रवनि' (यजु० ११७)। (सन) गां सनतीति गोसनिः । गाय की सेवा करनेवाला। गोसनि:' (यजु० ८।१२)। (रक्षि) पन्थानं रक्षतीति पथिरक्षिः। मार्ग का पालन करनेवाला। यो पथिरक्षी श्वानौं' (अथर्व ८१४९)। (मथ्) हविर्मथतीति हविर्मथि: । हवि का विलोडन करनेवाला। हविर्मथीनाम्' (ऋ० ७।१०४।२१)। सिद्धि-(१) ब्रह्मवनिः । यहां ब्रह्म' कर्म उपपद होने पर वन सम्भक्तों (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र 'इन्' प्रत्यय है। (२) गोसनिः । यहां गौ' कर्म उपपद होने पर 'षण सम्भक्तौ' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत्। (३) पथिरक्षि: । यहां पथिन्' कर्म उपपद होने पर रक्ष पालने' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत्। (४) हविर्मथि: । हवि:' कर्म उपपद होने पर मथे विलोडने' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत्। खश् (१) एजेः खश्।२८। प०वि०-एजे: ५।१ खश् ११। अनु०-कर्मणि इत्यनुवर्तते। अन्वय:-कर्मण्युपपदे एजेर्धातो: खश् । अर्थ:-कर्मणि कारके उपपदे णिजन्ताद् एजि-धातो: पर: खश् प्रत्ययो भवति । 'एजे:' इति ‘एज़ कम्पने इत्यस्य णिजन्तनिर्देशः । उदा०-(एजि) अङ्गम् एजयतीति अङ्गमेजयः । जनान् एजयतीति जनमेजयः। ___ आर्यभाषा-अर्थ-(कमणि) कर्म कारक उपपद होने पर (एजे:) णिजन्त एतृ (धातो:) धातु से परे (खश्) खश् प्रत्यय होता है। उदा०-(एजि) अङ्गम् एजयतीति अङ्गमेजयः । अङ्ग को कंपानेवाला (वातरोग)। जनान् एजयतीति जनमेजयः । दुष्टजनों को कंपानेवाला (धार्मिक राजा)। हस्तिनापुर का एक प्रसिद्ध राजा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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