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तृतीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः
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प्रत्यय (न) नहीं होता है। इस सूत्र से प्रतिषेध होने पर 'कर्मण्यण्' (३1२1१ ) से उत्सर्ग अण् प्रत्यय होता है।
उदा०
०- (शब्द) शब्दं करोतीति शब्दकारः । शब्द को बनानेवाला - वैयाकरण । (श्लोक) श्लोकं करोतीति श्लोककारः । श्लोक को बनानेवाला-कवि । ( कलह ) कलहं करोतीति कलहकारः । कलह करनेवाला - मूर्ख । (गाथा) गाथां करोतीति गाथाकारः । गाथा बनानेवाला-प्रचारक । (वैर) वैरं करोतीति वैरकारः । वैर करनेवाला शत्रु । (चाटु) चाटुं करोतीति चाटुकारः । चाटु= मीठी-मीठी बात करनेवाला - चापलूस । ( सूत्र ) सूत्रं करोतीति सूत्रकारः । सूत्र बनानेवाला- पाणिनिमुनि । (मन्त्र) मन्त्रं करोतीति मन्त्रकारः । वेदमन्त्र बनानेवाला ईश्वर अथवा मन्त्रार्थ का दर्शन करनेवाला - ऋषि । (पद) पदं करोतीति पदकारः । वेदमन्त्रों का पद विभाग करनेवाला - ऋषि।
सिद्धि - (१) शब्दकारः । यहां 'शब्द' कर्म उपपद होने पर 'डुकृञ् करणे ( तना० उ० ) धातु से इस सूत्र से 'ट' प्रत्यय का प्रतिषेध हो जाने पर 'कर्मण्यण्' (३1२1१ ) से उत्सर्ग 'अण्' प्रत्यय होता है । अण् प्रत्यय के णित् होने से 'अचो ञ्णिति' (७ 1२1११५) से 'कृ' को वृद्धि होती है।
(२) ऐसे ही 'श्लोककार: ' आदि पदों की सिद्धि करें ।
इन्
(१) स्तम्बशकृतोरिन् । २४ ।
प०वि०-स्तम्ब-शकृतोः ७।२ इन् १।१।
स०-स्तम्बश्च शकृच्च तौ स्तम्बशकृतौ तयोः स्तम्बशकृतो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) ।
अनु० - कर्मणि, कृञ इति चानुवर्तते ।
अन्वयः-स्तम्बशकृतोः कर्मणोरुपपदयोः कृञ इन्। अर्थ:-स्तम्बशकृतोः कर्मणोरुपपदयोः कृञ्धातोः पर इन् प्रत्ययो
भवति ।
उदा०-(स्तम्बः) स्तम्बं करोतीति स्तम्बकरि : ( व्रीहि: ) । ( शकृत् ) शकृत् करोतीति शकृत्करिः (वत्सः)।
आर्यभाषा - अर्थ - (स्तम्बशकृतो: ) स्तम्ब और शकृत् (कर्मणि) कर्म उपपद होने पर (कृञः) कृञ् (धातोः) धातु से परे (इन्) इन् प्रत्यय होता है।
उदा०- - (स्तम्ब) स्तम्बं करोतीति स्तम्बकरि: । अतिसार को थामनेवाला - चावल । (शकृत्करिः) शकृत् करोतीति शकृत्करिः । शकृत् = गोबर करनेवाला बछड़ा (छोटा दूध पीता बच्चा, घास न खानेवाला) ।
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