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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् ___ उदा०-(चर्) कुरुषु चरतीति-कुरुचर: । स्त्रियाम्-कुरुचरी। मद्रेषु चरतीति-मद्रचर: । स्त्रियाम्-मद्रचरी।
आर्यभाषा-अर्थ-(अधिकरणे) अधिकरण (सुपि) सुबन्त उपपद होने पर (चरे:) चर् (धातो:) धातु से परे (अच्) अच्-प्रत्यय होता है।
उदा०-(चर्) कुरुषु चरतीति-कुरुचरः । कुरु देश में विचरण करनेवाला । स्त्रीलिङ्ग में-कुरुचरी। मद्रेषु चरतीति-मद्रचरः। मद्र देश में विचरण करनेवाला। स्त्रीलिङ्ग में-मद्रचरी।
सिद्धि-कुरुचरः। यहां कुरु अधिकरण सुबन्त उपपद होने पर चर गतिभक्षणयो:' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से 'ट' प्रत्यय है। 'ट' प्रत्यय के टित् होने से स्त्रीलिङ्ग में टिड्ढाणञ्' (४।१।१५) से डीप' प्रत्यय होता है-कुरुचरी। ऐसे ही-मद्रचरः । मद्रचरी।
विशेष-दिल्ली और मेरठ प्रदेश का प्राचीन नाम कुरु' है। रावी और चनाब नदी के बीच का प्रदेश 'मद्र' कहाता है। ट:
(२) भिक्षासेनाऽऽदायेषु च।१७। प०वि०-भिक्षा-सेना-आदायेषु ७।३ च अव्ययपदम्।
स०-भिक्षा च सेना च आदायश्च ते भिक्षासेनाऽऽदायाः, तेषुभिक्षासेनाऽऽदायेषु (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) ।
अनु०-सुपि, चरे:, ट इति चानुवर्तते। अन्वय:-भिक्षासेनाऽऽदायेषु च सुप्सूपपदेषु चरेर्धातोष्टः ।
अर्थ:-भिक्षासेनाऽऽदायेषु सुबन्तेषु उपपदेषु चर-धातो: परष्ट: प्रत्ययो भवति।
उदा०-(भिक्षा) भिक्षां चरतीति भिक्षाचर: । (सेना) सेनां चरतीति सेनाचर:। (आदाय) आदाय चरतीति आदायचरः।
आर्यभाषा-अर्थ-(भिक्षासेनाऽऽदायेषु) भिक्षा, सेना, आदाय (सुपि) सुबन्त उपपद होने पर (चरे:) चर् (धातो:) धातु से परे (अच्) अच् प्रत्यय होता है।
उदा०-(भिक्षा) भिक्षां चरतीति भिक्षाचरः। भिक्षा को घूम-घूमकर अर्जित करनेवाला। यहां चर्' धातु घूमकर अर्जन करने अर्थ में है। (सेना) सेनां चरतीति सेनाचरः। सेना में भर्ती (प्रविष्ट) होनेवाला। यहां चर्' धातु प्रवेश अर्थ में हैं। (आदाय) आदाय चरतीति आदायचर: । लेकर खानेवाला, वापिस न देनेवाला।
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