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________________ तृतीयाध्यायस्य प्रथमः पादः १२१ उदा०- -(पा) उत्पिब: । उत्कृष्ट पान करनेवाला । विपिब: । विशिष्ट पान करनेवाला । (घ्रा ) उज्जिघ्रः । उत्कृष्ट गन्ध ग्रहण करनेवाला । विजिघ्रः । विशिष्ट गन्ध ग्रहण करनेवाला। (ध्मा) उद्धमः । उत्कृष्ट शब्द / अग्निसंयोग करनेवाला। (धेट्) उद्धयः । उत्कृष्ट पान करनेवाला । विधयः । विशिष्ट पान करनेवाला। (दृश्) उत्पश्यः । उत्कृष्ट देखनेवाला । विपश्यः । विशिष्ट देखनेवाला । कई आचार्य यहां 'उपसर्गे' की अनुवृत्ति नहीं करते हैं । उनके मत में - पिब: । जिघ्रः । धमः । धयः । पश्य: । पद बनते हैं । सिद्धि - (१) उत्पिब: । उत्+पा+श। उत्+पा+शप्+अ। उत्+पिब+अ+अ । उत् + पिब +अ । उत्पिब+ सु । उत्पिब: । यहां उत्-उपसर्गपूर्वक 'पा पाने' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से 'श' प्रत्यय। 'श' प्रत्यय के 'शित्' होने से 'तिङ् शित सार्वधातुकम् ' ( ३ | ४ | ११३) से इसकी सार्वधातुक संज्ञा है। सार्वधातुक परे होने पर 'कर्तरि शप्' (३|१|६८) से 'शप्' प्रत्यय होता है । 'शप्' परे होने पर 'पाघ्राध्मा०' (७।३।७८) से 'पा' के स्थान में 'पिब' आदेश होता है। वि-उपसर्गपूर्वक 'पा' धातु से - विपिब: । (२) उज्जिघ्रः । उद्धमः । उत्-उपसर्गपूर्वक घ्रा गन्धोपादानें' (भ्वा०प०) और 'धमा शब्दाग्निसंयोगयो:' (भ्वा०प०) से पूर्ववत् पद सिद्ध करें। (३) उद्धयः । उत्-उपसर्गपूर्वक 'धेट् पाने' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् । (४) उत्पश्य: । उत्-उपसर्गपूर्वक 'दृशिर् प्रेक्षणे' ( वा०प०) धातु से पूर्ववत् कार्य है । 'पाघ्राध्मा०' (७/३।७८) से 'दृश्' के स्थान में 'पश्य' आदेश होता है। (२) अनुपसर्गाल्लिम्पविन्दधारिपारिवेद्युदेजिचेतिसातिसाहिभ्यश्च । १३८ । प०वि० - अनुपसर्गात् ५ | १ लिम्प -विन्द - धारि - पारि-वेदि-उदेजिचेति-साति-साहिभ्य: ५ । ३ । च अव्ययपदम् । स०-न विद्यते उपसर्गो यस्य सोऽनुपसर्गः तस्मात् अनुसर्गात् ( बहुव्रीहि: ) । लिम्पश्च विन्दश्च धारिश्च पारिश्च वेदिश्च उदेजिश्च चेतिश्च सातिश्च साहिश्च ते - लिम्प० साहयः, तेभ्यः - लिम्प० साहिभ्यः (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अनु०-श इत्यनुवर्तते । अन्वयः - अनुपसर्गेभ्यो लिम्प०साहिभ्यश्च धातुभ्यः शः । For Private & Personal Use Only Jain Education International " www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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