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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् __ अर्थ:-अमावस्यदिति ण्यत्-प्रत्ययान्तं निपात्यते, तस्मिन् सति विकल्पेन वृद्धिर्भवति।
उदा०-अमा=सह वसतो यस्मिन् काले सूर्याचन्द्रमसाविति सा-अमावस्या, अमावास्या वा (तिथि:)।
आर्यभाषा-अर्थ- (अमावस्यत्) अमावस्यत् यह ण्यत्-प्रत्ययान्त निपातित है, ‘ण्यत्' प्रत्यय होने पर (अन्यतरस्याम्) विकल्प से वृद्धि होती है। अमावस्यत् यहां तकार अनुबन्ध के संकेत से ण्यत्' प्रत्यय का ग्रहण किया जाता है, क्या' प्रत्यय का नहीं।
। उदा०-अमावस्या, अमावास्या। जिस काल में सूर्य और चन्द्रमा अमा साथ वस्-रहते हैं उस तिथि को अमावस्या तथा अमावास्या कहते हैं।
सिद्धि-(१) अमावस्या। यहां अमा उपपद होने पर वस् निवासे' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से ‘ण्यत्' प्रत्यय है और 'अत उपधाया:' ((७।२।११६) से प्राप्त वृद्धि नहीं होती है।
(२)अमावास्या। यहां अमा उपपद होने पर पूर्वोक्त वस्' धातु से ‘ण्यत्' प्रत्यय' है और विकल्प से 'अत उपधायाः' (७।२।११६) से वृद्धि हो जाती है।
विशेष-सूत्र में त्' अनुबन्ध के संकेत से यहां ण्यत्' प्रत्यय होता है और तित् स्वरितम् (६।१।१७९) से यहां स्वरित स्वर है। (१६) छन्दसि निष्टर्यदेवहूयप्रणीयोन्नीयोच्छिष्यमर्यस्तर्याध्वर्यखन्यखान्यदेवयज्यापृच्छयप्रतिषीव्यब्रह्मवाद्य
भाव्यस्ताव्योपचाय्यपृडानि।१२३। प०वि०-छन्दसि ७।१ निष्टर्य-देवहूय-प्रणीय-उन्नीय-उच्छिष्यमर्य-स्तर्या-ध्वर्य-खन्य-खान्य-देवयज्या-आपच्छ्य-प्रतिषीव्य-ब्रह्मवाद्यभाव्य-स्ताव्य-उपचाय्यपृडानि १।३ ।
स०-निष्टर्यश्च देवहूयश्च प्रणीयश्च उन्नीयश्च उच्छिष्यश्च मर्यश्च स्तर्या च ध्वर्यश्च खन्यश्च खान्यश्च देवयज्या च आपृच्छ्यश्च प्रतिषीव्यश्च ब्रह्मवाद्यं च भाव्यं च स्ताव्यश्च उपचाय्यपृडं च तानिनिष्टळ०उपचाय्यपृडानि (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अर्थ:-छन्दसि विषये निष्टादय: शब्दा निपात्यन्ते।
उदा०-(निष्टर्य:) निष्टक्र्यं चिन्वीत पशुकामः । देवहूयः । प्रणीयः । उन्नीयः । उच्छिष्यम् । मर्य: । स्तर्या । ध्वर्यः । खन्य: । खान्यः । देवयज्या।
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