________________
तृतीयाध्यायस्य प्रथमः पादः
१०५
सिद्धि-(१) कृत्यम् । यहां 'डुकृञ् करणे' (तना० उ० ) धातु से इस सूत्र से 'क्यप्' प्रत्यय है। 'क्यप्' प्रत्यय के पित् होने से 'हस्वस्य पिति कृति तुक्' (६ |१ |६९ ) से 'कृ' को 'तुक्' आगम होता है। यहां 'ऋहलोर्ण्यत्' (३ । १ । १२४) से नित्य 'ण्यत्' प्रत्यय प्राप्त था, इससे विकल्प विधान किया गया है।
(२) कार्यम् । यहां पूर्वोक्त 'कृ' धातु से विकल्प पक्ष में 'ऋहलोर्ण्यत्' (३ । १ । १२४) से 'ण्यत्' प्रत्यय है। 'अचो णिति' (७।२1११५) से 'कृ' धातु को वृद्धि होती है।
(३) वृष्यम् | यहां 'वृषु सेचने' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से 'क्यप्' प्रत्यय है । 'क्यप्' प्रत्यय के कित् होने से प्राप्त लघूपध गुण का 'क्ङिति च ' (१1१14) से प्रतिषेध होता है। 'ऋदुपधाच्चाक्लृपिचृते:' (३ । १ । ११०) से नित्य 'क्यप्' प्रत्यय प्राप्त था। इससे विकल्प विधान किया गया है।
(४) वर्ष्यम् । यहां पूर्वोक्त वृष् धातु से 'ऋहलोर्ण्यत्' (३ । १ । १२४) से विकल्प पक्ष में 'ण्यत्' प्रत्यय है । 'पुगन्तलघूपधस्य च' (७ । ३ । ८६ ) से लघूपध गुण होता है। निपातनम् (क्यप् ) -
(१५) युग्यं च पत्रे | १२१ |
प०वि०- - युग्यम् १ । १ च अव्ययपदम्, पत्रे ७ । १ । पतति=गच्छत्यनेन इति पत्रम्, तस्मिन् पत्रे । पत्रम् = वाहनमित्यर्थः ।
अनु०-क्यप् इत्यनुवर्तते ।
अर्थ:- पत्रेऽर्थे युग्यमिति पदं क्यप् प्रत्ययान्तं निपात्यते ।
उदा० - युग्यो गौः । युग्योऽश्वः ।
आर्यभाषा - अर्थ - (पत्रे) वाहन अर्थ में (युग्यम्) युग्य पद (क्यप् ) क्यप् प्रत्ययान्त निपातित है ।
उदा०-युग्यो गौ: । गाड़ी में जोड़ने योग्य बैल। युग्योऽश्वः । तांगे आदि में जोड़ने योग्य घोड़ा ।
सिद्धि - युग्य: । यहां युजिर् योगे' (रुधा० उ०) धातु से इस सूत्र से 'क्यप्' प्रत्यय है और निपातन से कुत्व होता है। 'ऋहलोर्ण्यत्' (३ | १|१२४) से 'ण्यत्' प्रत्यय
प्राप्त था।
निपातनम् ( ण्यत्) -
(१५) अमावस्यदन्यतरस्याम् । १२२ ।
प०वि०-अमावस्यत् १।१ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम् ।
अनु०-अत्र तकारानुबन्धाद् ण्यत्-प्रत्ययोऽभिसम्बध्यते, न क्यप् ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International