________________
१०२
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् विशेष-नक्षत्र-अश्विनी आदि २७ नक्षत्रों में एक नक्षत्र का नाम पृष्य है। सिध्य शब्द पुष्य नक्षत्र का पर्यायवाची है। पुष्य और सिध्य नक्षत्र को तिष्य भी कहते हैं। पुष्य नाम अधिक प्रसिद्ध है। निपातनम् (क्यप्)
(११) विपूयविनीयजित्या मुञ्जकल्कहलिषु।११७। प०वि०-विपूय-विनीय-जित्या: १३ मुञ्ज-कल्क-हलिषु ७।३ ।
स०-विपूयश्च विनीयश्च जित्यश्च ते-विपूयविनीयजित्या: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। मुञ्जश्च कल्कश्च हलिश्च ते-मुञ्जकल्कहलय: तेषु-मुञ्जकल्कहलिषु (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) ।
अनु०-क्यप् इत्यनुवर्तते।
अर्थ:-विपूय-विनीय-जित्या: शब्दा यथासंख्यं मुज-कल्क-हलिष्वर्थेषु क्यप्-प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते।
उदा०-विपूय: मुञ्ज: । विनीय: कल्कः । जित्य:-हलि: । बृहद् हलं हलिः, इति न्यासकारः। कृष्टसमीकरणार्थं स्थूलं काष्ठं हलिरित्युच्यते। इति पदमञ्जर्या हरदत्तमिश्रः ।
आर्यभाषा-अर्थ-(विपूयविनीयजित्याः) विपूय, विनीय, जित्य शब्द यथासंख्य (मुञ्जकल्कहलिषु) मुञ्ज, कल्क, हलि अर्थों में (क्यप्) क्यप्-प्रत्ययान्त निपातित हैं।
उदा०-विपूय: मुजः । कुशा (मूंज)। विनीय: कल्क: । औषध आदि की गाध । जित्य: हलि: । बड़ा हल। यह बल से वश में करने योग्य होने से जित्य कहाता है। ईख बोने के लिये हल के मुख के दोनों ओर गंडीरी बांधकर जो बड़ा हल बनाया जाता है, उसे हलि' कहते हैं।
सिद्धि-(१) विपूय:- यहां वि-उपसर्गपूर्वक पूङ् पवने' (भ्वा०आ०) धातु से इस सूत्र से क्या' प्रत्यय है। 'अचो यत्' (३।१।९७) से यत्' प्रत्यय प्राप्त था।
(२) विनीय: । यहां वि-उपसर्गपूर्वक ‘णी प्रापणे' (भ्वा० उ०) धातु से इस सूत्र से क्यप् प्रत्यय है। पूर्ववत् यत्' प्रत्यय प्राप्त था।
(३) जित्यः । यहां जि जये' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से क्यप्' प्रत्यय है। क्यप्' प्रत्यय के पित् होने से ह्रस्वस्य पिति कृति तुक्' (६।१।६९) से जि' धातु को तुक्’ आगम होता है। 'अचो यत्' (३।१।९७) से यत्' प्रत्यय प्राप्त था।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org