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________________ तृतीयाध्यायस्य प्रथमः पादः १०१ यहां उज्झ उत्सर्गे' (तु०प०) धातु से इस सूत्र से कर्ता अर्थ में क्यप्’ प्रत्यय है। पूर्ववत् ‘ण्वुल' अथवा तृच्' प्रत्यय प्राप्त था। निपातन से उज्झ् के झ् को ध् आदेश होता है। झलां जश् झषि' (८।४।५३) से ज् को जश् (द्) हो जाता है। नदी-उद्ध्य का वर्तमान नाम 'उझ' है। यह जम्मू इलाके के जसरोटा जिले में होती हुई, कुछ दूर पंजाब में बहकर गुरदासपुर जिले में रावी के दाहिनी किनारे पर मिल गई है। उझ के लगभग १५ मील पच्छिम जम्मू प्रदेश से ही बई नाम की दूसरी नदी गुरदासपुर जिले में ही रावी में मिली है। यही प्राचीन भिद्य ज्ञात होती है (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ५२-५३)। कवि कालिदास ने राम और लक्ष्मण की जोड़ी की उपमा भिद्य और उद्ध्य नदी से रघुवंश में दी हैवीचिलोलभुजयोस्तयोर्गतं, शैशवाच्चापलमप्यशोभत । तोयदागम इवोद्ध्यभिद्ययो र्नामसदृशं विचेष्टितम् ।। (११।८) निपातनम् (क्यप्) (१०) पुष्यसिध्यौ नक्षत्रे।११६ । प०वि०-पुष्य-सिध्यौ १।२ नक्षत्रे ७।१। स०-पुष्यश्च सिध्यश्च तौ पुष्यसिध्यौ (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अनु०-क्यप् इत्यनुवर्तते। अर्थ:-पुष्यसिध्यौ शब्दौ क्यप्-प्रत्ययान्तौ निपात्येते, नक्षत्रेऽभिधेये। उदा०-पुष्यन्त्यर्था अस्मिन्निति-पुष्यः । सिध्यन्त्यर्था अस्मिन्नितिसिध्यः । आर्यभाषा-अर्थ-(पुष्यसिध्यौ) पुष्य और सिध्य शब्द (क्यप्) क्यप्-प्रत्ययान्त निपातित हैं (नक्षत्रे) नक्षत्र अर्थ में। उदा०-पुष्यन्त्यर्था अस्मिन्निति-पुष्यः। वह नक्षत्र जिसमें पदार्थ पुष्ट होते हैं। सिध्यन्त्यर्था अस्मिन्निति-सिध्यः । वह नक्षत्र जिसमें अर्थ सिद्ध होते हैं। सिद्धि-पुष्य:, सिध्यः । यहां 'पुष पुष्टौ' (दि०प०) तथा सिधु संराद्धौ' (दि०प०) धातु से इस सूत्र से अधिकरण कारक में क्यप् प्रत्यय है। करणाधिकरणयोश्च (३।३।११७) से ल्युट् प्रत्यय प्राप्त था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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