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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-(१) ब्रह्मवद्यम्। ब्रह्मन्+डस्+वद्+यत् । ब्रह्म+वद्+य। ब्रह्मवद्य+सु । ब्रह्मवद्यम्।
यहां ब्रह्म' सुबन्त उपपद होने पर वद वक्तायां वाचिं' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से भाव अर्थ में यत्' प्रत्यय है। ऐसे ही-सत्यवद्यम् ।
(२) ब्रह्मोद्यम् । ब्रह्मन्+डस्+वद्+क्यम्। ब्रह्मविद्+य। ब्रह्म+उ अ द्+य। ब्रह्म+उद्+य। ब्रह्मोद्य+सु । ब्रह्मोद्यम्।
यहां ब्रह्म सुबन्त उपपद होने पर पूर्वोक्त वद्' धातु से इस सूत्र से भाव अर्थ में क्यप् प्रत्यय है। क्यप् के कित् होने से वचिस्वपियजादीनां किति' (६।१।१५) से वद्' धातु को सम्प्रसारण, सम्प्रसारणाच्च' (६।१।१०४) से 'अ' को पूर्वरूप और 'आद्गुणः' (६।१८४) से गुण रूप एकादेश होता है।
विशेष-क्यम् प्रत्यय में प्' अनुबन्ध 'अनुदात्तौ सुपतिपौ' (३।१।४) से अनुदात्त स्वर के लिये है। क्यप्
(१) भुवो भावे।१०७। प०वि०-भुव: ५।१ भावे ७।१। अनु०-अनुपसर्गे, सुपि इति चानुवर्तते। अन्वय:-अनुपसर्गे सुपि भुवो धातोभवि क्यप्।
अर्थ:-अनुपसर्गे उपसर्गवर्जिते सुबन्ते उपपदे भुवो धातो: परो भावेऽर्थे क्यप्-प्रत्ययो भवति।
उदा० (भू) ब्रह्मभूयं गतः । देवभूयं गतः । ब्रह्मभावं देवभावं वा प्राप्त इत्यर्थः ।
आर्यभाषा-अर्थ- (अनुपसर्गे) उपसर्ग को छोड़कर (सुपि) सुबन्त उपपद होने पर (भुव:) भू (धातो:) धातु से परे (भावे) भाव अर्थ में (क्यप्) क्यप् प्रत्यय होता है।
उदा०-(भू) ब्रह्मभूयं गतः । ब्रह्मत्व को प्राप्त हुआ। देवभूयं गतः । देवत्व को प्राप्त हुआ।
सिद्धि-(१) ब्रह्मभूयम्। ब्रह्मन्+डस्+भू+क्यम् । ब्रह्म+भू+य। ब्रह्मभूय+सु । ब्रह्मभूयम्।
यहां 'भू सत्तायाम्' (भ्वा०प०) धातु से ब्रह्म' सुबन्त उपपद होने पर इस सूत्र से भाव अर्थ में क्यप्' प्रत्यय है। क्यप् के कित् होने से सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७।३।८४) से प्राप्त गुण का विङति च' (११११५) से निषेध हो जाता है। ऐसे ही-देवभूयम्।
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